नई दिल्ली। डेटा स्टोरेज डिवाइजेस के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने ऐसी क्रांतिकारी तकनीक को खोज निकाला है जिस पर स्टोर किया गया डेटा अरबों, खरबों वर्षों तक सुरक्षित बना रहता है।यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के वैज्ञानिकों ने साधारण कांच जैसे दिखने वाले एक ‘इंटरनेशनल स्टोरेज सिस्टम’ को खोज निकाला है जिस पर लेजर तकनीक के जरिए 360 टेराबाइट्स (टीबी) तक का डेटा रिकॉर्ड किया जा सकता है। ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स रिचर्स सेंटर के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं ने अपनी इस खोज को ‘सुपरमैन ग्लास क्रिस्टल’ का नाम दिया है और शोधकर्ता ऐसी कंपनियों का पता लगा रहे हैं जोकि इस खोज को बाजार में उपलब्ध करा सकें।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने इस सुपरमैन मेमरी ग्लास को नैनोस्ट्रक्चरल ग्लास से बनाया है जिस पर लेजर की मदद से ‘मैग्ना कार्टा‘, ‘यूनिवर्सल डिक्लरेशन ऑफ ह्मूमन राइट्स’ और ‘किंग जेम्स बाइबल’ को कांच के एक टुकडे पर डिजीटली स्टोर कर दिया है जो कि 13.8 बिलियन वर्षों तक सूचना को सुरक्षित रखा जा सकेगा।
लेजर की मदद से उभारी गई इन दस्तावेजों को एक सिक्के के बराबर आकार वाले कांच के टुकड़े पर उकेरा गया है। इन दस्तावेजों के साथ आइजक न्यूटन के वैज्ञानिक ग्रंथ ‘ऑक्टिक्स’ को भी डिजिटाइज किया है। इस तरह की छोटी डिस्क अरबों वर्षों तक 374 डिग्री के फेरनहाइट (या 190 डिग्री सेस्लियस) के तापमान पर रखा जाता है। कमरे के इस तापमान पर इन दस्तावेजों को हमेशा के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के एक प्रोफेसर पीटर कजानस्की का कहना है कि यह सोचना रोमांच से भर देता है कि हमने आगामी पीढ़ियों के लिए अंतरिक्ष में स्टोर करने लायक तकनीक हासिल कर ली है। इस तकनीक के अंतर्गत लेजर तकनीक से क्रिस्टल्स शब्दों को डिकोड कर सकेंगे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ग्लास डिस्क में तीन परतें (लेयर्स) होती हैं जिनके बीच पांच माइक्रोमीटर्स की दूरी होगी। इन पर लिखने के लिए फैम्टोसेकंड लेजर राइटिंग तकनीक को अपनाया गया है जिसके जरिए ग्लास पर लिखा जाता है। इस लिखावट में ऐसे क्रिस्टल्स होंगे जोकि लेजर तकनीक से मिलने वाली लाइट (रोशनी) को शब्दों में बदल देंगे। इस लिखावट को ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप और पोलराइजर के माध्यम से पढ़ा जा सकेगा।
ग्लास डिस्क की विशेषताएं और लाभ :
इसकी स्टोरेज क्षमता 360 टेराबाइट्स तक होगी। 190 डिग्री सेल्सियस पर इसे 13.8 अरब वर्षों तक डेटा सुरक्षित रहेगा। वहीं सामान्य तापमान पर इसे किसी भी पीढ़ी को आजीवन सुरक्षित रखा जा सकेगा।
इसके कुछ लाभ इस प्रकार से होंगे। लाइब्रेरी, म्यूजियम,कानून, नेशनल आर्काव्स जैसे विभागों के डेटा स्टोरेज में आसानी हो जाएगी। वर्षों तक डेटा एक जैसी फॉर्म में बना रहेगा। इसके जरिए किताबों का डिजिटल रिकॉर्ड रखा जा सकेगा जिसके खराब होने की संभावना बहुत कम होगी। डिजिटल फॉर्म में मौजूद डेटा तक पहुंच बनानी भी आसान होगी।
कजानस्की का दावा है कि इस तकनीक के जरिए मानव सभ्यता का आखिरी प्रमाण भी सुरक्षित रखा जा सकेगा। जो कुछ हमने सीखा है, उसे कभी भुलाया भी नहीं जा सकेगा। वर्ष 2013 में कजानस्की और उनके साथियों ने ‘ 5 डी डेटा स्टोरेज’ की जानकारी दी थी। उस समय लेजर्स और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स में सान जोस में एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी। इस काम में शोधकर्ताओं ने फेमेटोसेकंड लेजर्स का इस्तेमाल किया था जोकि इस प्रकार के लेजर्स होते हैं जिनकी पल्स बहुत छोटी होती है। इस तरह से सूचना को लिखने में नैनोस्ट्रक्चर्ड डॉट्स का प्रयोग किया जाता है। ये डॉट्स 5-5 माइक्रोमीटर्स की दूरी पर होते हैं। इस नैनोसाइज की लिखावट पर ऐसी रोशनी को पोलराइज किया जाता है जोकि कांच के जरिए गतिशील होती है।