नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगा मामले में सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को दंगा पीडि़त बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को सरकारी नौकरी और नियमानुसार आवास देने का भी आदेश दिया है। खंडपीठ में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल हैं।
मंगलावार को हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने मामले के साक्ष्य नष्ट करने के दोषी आईपीएस अधिकारी आरएस भगोरा को दो पद डिमोट करने की राज्य सरकार की सिफारिश को चार हफ्ते में लागू करने का भी आदेश दिया है। भगोरा 31 मई को रिटायर होने वाले हैं।
गौरतलब है कि इस मामले में गुजरात सरकार ने पीड़िता बिलकिस बानो को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने की पेशकश की थी। पिछली सुनवाई में बिलकिस बानो ने इस पेशकश को पीठ के समक्ष ठुकरा दिया था। पिछली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से गुजरात हाईकोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पूरी करने के लिए भी कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सवाल उठाया था कि केस में सजायाफ्ता पुलिस वाले और डॉक्टर काम कैसे कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा था कि दोषी पुलिसवालों व डॉक्टर के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है, इस बात की जानकारी दी जाए।
गुजरात हाईकोर्ट ने चार मई 2017 को भारतीय दंड संहिता की धारा-218 (अपनी ड्यूटी का निर्वहन ना करने) और धारा 201 (सुबूतों से छेड़छाड़ करने) के तहत पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों को दोषी ठहराया था। 10 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आइपीएस अधिकारी समेत दो डॉक्टरों और चार पुलिसकर्मियों की अपील को खारिज करते हुए कहा था कि उनके खिलाफ सबूत बिल्कुल साफ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील खारिज करते हुए यह भी कहा था कि सुनवाई अदालत ने बिना किसी कारण के उन्हें बरी कर दिया था।
गौरतलब है कि गुजरात में सेवारत आईपीएस अधिकारी आरएस भगोरा समेत चार अन्य पुलिसकर्मियों को हाईकोर्ट ने दोषी करार दिया था। हालांकि, एक पुलिसकर्मी इदरीस अब्दुल सईद ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की थी।