नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में गुरुवार को एक फैक्ट्री में रिसाव के बाद लोगों पर काल बनकर टूट पड़ने वाली गैस का नाम है- स्टाइरीन।  स्टाइरीन को स्टाइरोल और विनाइल बेंजीन भी कहते हैं। यह रंगहीन या हल्का पीला ज्वलनशील द्रव (लिक्विड) होता है जोकि बहुत खतरनाक है। इस गैस के संपर्क में आने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है। ये गैस व्यक्ति की नसों, गले, आंखों और शरीर के अलग-अलग भागों पर प्रभाव डालती है। इसके शरीर में जाने से जलन, सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर सीधा असर होता है।

यह एक बहुत ज्वलनशील गैस है। विषेशज्ञों का कहना है कि इस गैस से प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द इलाज मिलना चाहिए। इस गैस के संपर्क में आने से मनुष्य की त्वचा में रेशेज, आंखों में जलन, उल्टी, बेहोशी, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

कम समय के लिए अगर इस गैस का रिसाव हो तो आंखों में जलन जैसे नतीजे सामने आते हैं लेकिन लंबे समय तक शरीर में रहने से यह गैस बुरा प्रभाव डालती है। यह गैस बच्चों और सांस के मरीजों के लिए बहुत खतरनाक है। 

त्वचा के जरिए भी शरीर में हो सकती है दाखिल

स्टाइरीन गैस के सबसे खतरनार पहलू यह  है कि यह त्वचा के जरिए भी शरीर में दाखिल हो सकती है। अगर त्वचा के जरिए शरीर में इसकी बड़ी मात्रा पहुंच जाए तो सांस लेने के जरिए पैदा होने वाले सेंट्रल नर्वस सिस्टम डिप्रेशन जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। अगर स्टाइरीन पेट में पहुंच जाए तो भी इसी तरह के असर दिखाई देते हैं। इससे त्वचा में हल्की जलन और आंखों में मामूली से लेकर गंभीर जलन तक हो सकती है।

 इन जगहो पर होता है स्टाइरीन गैस का इस्तेमाल

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार स्टाइरीन का इस्तेमाल पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक, फाइबर ग्लास और रबर बनाने में होता है। इसके अलावा पाइप, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, प्रिंटिग, कॉपी मशीन, जूते , खिलौने आदि बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

error: Content is protected !!