दुबई। कच्चे तेल (Brent crude) तथा दुनियाभर से मक्का-मदीना आने वाले श्रद्धालुओं के दम पर “लहलहा” रही सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को कोरोना वायरस ने झकझोर कर रख दिया है। दुनियभर में सड़क, रेल, वायु और जल परिवहन के साथ ही उद्योग धंधे ठप होने की वजह से कच्चे तेल की मांग घटने से इससे होने वाली कमाई में भारी गिरावट आयी है।“तरल सोना” कहलाने वाला कच्चा तेल औने-पौने दामों पर बिक रहा है। उमरा बंद है और इस साल की हज यात्र पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। लिहाजा खजाना लगभग खाली हो गया है। लिहाजा अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने बुनियादी वस्तुओं पर टैक्स को तीन गुना कर 15 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। प्रमुख परियोजनाओं पर खर्च में करीब 26 अरब डॉलर की कटौती की जा रही है। है। देश के नागरिकों के लिए वर्ष 2018 में शुरू किया गया निर्वाह व्यय भत्ता भी बंद कर दिया गया है।

अर्थव्यवस्था के विविधीकरण के प्रयासों के बावजूद सऊदी अरब राजस्व के लिए कच्चे तेल पर बहुत अधिक निर्भर है। कच्चा तेल इस समय करीब 30 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है। कीमत का यह स्तर सऊदी अरब के अपने खर्च को पूरा करने के लिए काफी कम है। इसके अलावा कोरोना वायरस महामारी के चलते लागू लॉकडाउन के कारण मुस्लिम तीर्थस्थल मक्का और मदीना की यात्रा भी बंद है। इससे राजशाही को राजस्व का नुकसान हो रहा है।  सरकार का राजस्व वर्ष 2020 की पहली तिमाही में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 22 प्रतिशत कम हुआ और घाटा नौ अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इस दौरान पिछले साल की समान तिमाही के मुकाबले तेल से कमाई 24 प्रतिशत घटी है।

खाड़ी के 6 तेल उत्पादक देशों की हालत पतली

अनुमान जताया जा रहा है कि इस साल सऊदी अरब के पड़ोसी देश भी अपने नागरिकों पर ऊंचे कर लगा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि सभी छह तेल उत्पादक खाड़ी के देशों में इस साल आर्थिक मंदी रहेगी। सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जादान ने कहा, “हम एक ऐसे संकट का सामना कर रहे हैं जिसे आधुनिक इतिहास में दुनिया ने कभी नहीं देखा है, जो अनिश्चितता का प्रतीक है।”  सरकारी सऊदी प्रेस एजेंसी द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक उन्होंने कहा. ‘”आज जो उपाए किये गए हैं, वे जितने कठिन हैं, व्यापक वित्तीय और आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए उतने ही जरूरी और लाभदायक भी हैं।”

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