नई दिल्ली। उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात सहित अन्य राज्यों में श्रम कानून में किए गए बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करके चुनौती दी गई है। इन राज्यों में श्रम कानून में संशोधन करने का अध्यादेश जारी हुआ है। ये संशोधन विदेशी निवेशकों को भारत लाने के मकसद से किया गया है। श्रम कानून में संशोधन अलग-अलग राज्यों तीन महीने से लेकर तीन वर्षो तक के लिए किया गया है।
याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि राज्य सरकारों के इन अध्यादेशों को रद्द कर श्रम कानून को संरक्षित किया जाये। राज्य सरकारों ने फैक्ट्री एक्ट का संसोधन कर मजदूरों के मूल अधिकारों को हनन करने का प्रयास किया है। 8 घंटे की जगह 12 घंटे कार्य करवाना तथा न्यूनतम मजदूरी से भी वंचित रखना मानवाधिकार का हनन है।
याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकारों ने श्रम कानून में बदलाव युद्ध काल के दौरान मिलने वाले राज्य सरकार के अधिकारों के आधार पर किया है. जो ना तो राजनीतिक दृष्टि से सही है, ना ही नैतिक दृष्टि से। इस लाखों श्रमिक-कामगार पीड़ा को झेल रहे हैं और लॉकडाउन खत्म होने के बाद जब वे वापस फैक्ट्री में जाएंगे तो नया अध्यादेश उन्हें अपने फंसे हुए रुपयों को निकालने में भी बड़ी अड़चन खड़ा करेगा।
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के अध्यदेश श्रमिक-कामगारों को आजादी से पहले से मिलते आ रहे हर उस अधिकार और सुविधा से वंचित करने की कोशिश है जिसके वे हकदार हैं। श्रमिक-कामगार की जान और जमीर की कीमत पर निवेशकों को आमंत्रित करना कहीं से भी उचित नहीं है।