नई दिल्‍ली। आश्रमों और आध्यात्मिक केंद्रों के नाम पर चल रही “दुकानों” पर कार्रवाई की तलवार लटक गई है। सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर विचार करने पर सहमत हो गया है जिसमें केंद्र सरकार को फर्जी बाबाओं द्वारा चलाए जा रहे आश्रमों और आध्यात्मिक केंद्रों को बंद किए जाने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वह देश में आश्रमों एवं अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं की स्थापना को लेकर संबंधित अधिकारियों को गाइडलाइन तय करने का निर्देश जारी करे।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को याचिका देखने का निर्देश देते हुए कहा कि इस पर गौर करिए कि क्या किया जा सकता है। इससे सभी की बदनामी होती है। याचिका में दावा किया गया है कि ऐसे आश्रमों में महिलाएं जेल जैसी गंदे और अस्वास्थ्यकर स्थितियों में रहती हैं जिससे उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा है।

मुख्‍य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के कार्यालय को याचिका की एक प्रति देने को भी निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने मामले पर मेहता के विचार मांगे और मामले को दो हफ्ते के बाद आगे की सुनवाई के लिए निर्धारित किया।

तेलंगाना के सिकंदराबाद निवासी याचिकाकर्ता डुम्पाला रामरेड्डी ने याचिका में दलील दी है कि वीरेंद्र देव दीक्षित, आसाराम बापू, गुरमीत राम रहीम सिंह आदि के खिलाफ बहुत गंभीर आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं फिर भी उनके आश्रम उनके करीबी सहयोगियों की मदद से चलाए जा रहे हैं। यहां तक कि स्‍थानीय प्रशासन वहां पर मुहैया कराई जा रही सुविधाओं का सत्यापन भी नहीं करा रहा है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि महिलाओं को आश्रमों में रहने के लिए मजबूर किया गया और उनको नशीले पदार्थ भी दिए गए।

याचिका में विशेष तौर पर दिल्ली में रोहिणी स्थित आध्यात्मिक विद्यालय खाली कराने और वहां रह रही करीब 170 महिलाओं को वहां से निकाले जाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि रोहिणी के आध्यत्मिक विद्यालय में पिछले तीन साल से उनकी बेटी रह रही है जो कि अमेरिका की यूनीवर्सिटी से पढ़ी है। कहा गया है कि इस आध्यात्मिक विद्यालय का संस्थापक वीरेंद्र देव दीक्षित दुष्कर्म के मामले में आरोपित है और तीन साल से फरार है। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में उस आश्रम की दयनीय हालत बयां की थी। उस रिपोर्ट का कुछ अंश हाइकोर्ट ने भी अपने आदेश में दर्ज किया था। 

याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्तमान में फैली कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए आध्यत्मिक विद्यालय जैसे आश्रमों में जहां सोशल डिस्टेंसिंग नहीं है, से महिलाओं को निकाला जाए। सुप्रीम कोर्ट मामले में दखल दे और याचिकाकर्ता की बेटी सहित करीब 170 महिलाओं को रोहिणी के आध्यत्मिक विद्यालय से मुक्त कराए। साथ ही इसी तरह के 16 अन्य फर्जी बाबाओं के आश्रमों और अखाड़ों के खिलाफ कार्रवाई की जाए जो कि लड़कियों और महिलाओं को जाल में फंसाते हैं।

याचिका में कहा गया है कि हिन्दू संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 17 बाबाओं को “फर्जी बाबा” घोषित किया था जिसमें वीरेंद्र देव दीक्षित भी शामिल है। याचिकाकर्ता की मांग है कि आध्यत्मिक विद्यालय सहित सभी फर्जी बाबाओं के आश्रम खाली कराए जाएं। साथ ही सभी आश्रमों और आध्यत्मिक केन्द्रों में रहने वाले लोगों का रजिस्टर मेनटेन करने का आदेश दिया जाए।

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