पटना। ‘मिसाइलमैन’ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को ‘भारत रत्न’ के सम्मान से नवाजा गया। वे भारत के राष्ट्रपति रहे। लेकिन, उनका ‘सबसे प्रिय सपना’ पायलट बनने का था। अपने इस सपने को वे पूरा नहीं कर सके। कलाम ने अपनी पुस्तक ‘माई जर्नी : ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शंस’ में इसपर प्रकाश डाला है।
कलाम ने मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। वे लिखते हैं, ‘मैं हवा में ऊंची से ऊंची उड़ान के दौरान मशीन को नियंत्रित करना चाहता था, यही मेरा सबसे प्रिय सपना था।’ कलाम ने देहरादून में भारतीय वायुसेना का साक्षात्कार दिया था। वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार में 25 उम्मीदवारों में कलाम को नौंवा स्थान मिला था। केवल आठ जगहें खाली थीं, सो उनका चयन नहीं हो सका।
कलाम लिखते हैं, ‘मैं वायुसेना का पायलट बनने का अपना सपना पूरा करने में असफल रहा।’ उन्होंने लिखा है, ‘मैं तब कुछ दूर तक चलता रहा और तब तक चलता रहा जब तक कि एक टीले के किनारे नहीं पहुंच गया।’ इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश जाकर ‘नयी राह’ तलाशने का निर्णय लिया। इसके बाद उनकी इस ‘नई राह’ ने देश को जो नई ऊंचाई दी, वह जग-जाहिर है। राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी उनका जीवन क्रियाशील बना रहा। वे ताउम्र देश सेवा में लगे रहे।