बरेली। बुधवार को रामनवमी थी और शहर के लोग साथ बैठे, बाते कीं और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए रास्ता बनाने के लिए अपील की। मौका था विजन रुहेलखण्ड द्वारा गंगाचरण अस्पताल के सभागार में विचार गोष्ठी का। विषय रखा गया था-बरेली की जनता का आह्वान, अयोध्या विवाद को हो समाधान। इस विचार गोष्ठी में सनातनी हिन्दू भी तो इस्लाम को मानने वाले भी थे।
गोष्ठी की खास बात यह रही कि लोगों ने माना कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का हल कोर्ट द्वारा दिया जाना बहुत मुश्किल है। यह बहुत पेंचीदा मसला है। हालांकि इस बीच लोगों ने खुलकर अपने विचार रखे।
मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक महरध्वज ने कहा राम भारत के प्राण हैं। भारत के लिए हिन्दू मुसलमानों ने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी। बाबर बाहरी आक्रांता था। गुजरात के हसन खां मेवाती ने रामजन्मभूमि के लिए बाबर से युद्ध किया और उसे हराया। लेकिन बाबर ने छल से उन्हें रात में मरवा दिया। उन्होंने कहा कि श्रीराम न केवल हिन्दुओं के बल्कि भारतीय मुसलमानों के भी पूर्वज हैं। कहा कि भारतीय मुसलमानों को अपने शिजरे को पहचानना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक शंभू दयाल वाजपेयी ने कहा कि यह मसला बेहद पेंचीदा है। इसमें तीन बातें प्रमुख हैं। पहली धर्म, दूसरी मंदिर-मस्जिद और तीसरी राम। उन्होंने आस्था की व्याख्या करते हुए कहा कि अंधी भी हो सकती है। रही बात मंदिर और मस्जिद की तो उन्हें कहीं भी बनाया जा सकता है।
तीसरी बात राम की। तो राम के जीवन के कई पहलू हैं। राम को भगवान का अवतार माना जाता है। अयोध्या उनकी जन्मस्थली है, जिसे बदला नहीं जा सकता। राम भारतीय जनमानस के प्राण हैं। राम, भारतीय संस्कृति, अस्मित, रहन-सहन और प्राण के प्रतीक हैं। इसीलए वहां मंदिर ही बनना चाहिए। मंदिर का निर्माण संवाद से ही हो तो बेहतर होगा।
इससे पूर्व आयोजक डा. प्रमेन्द्र माहेश्वरी ने विषय का परिचय कराते हुए कहा कि अयोध्या, यानी जहाँ युद्ध न हो, परन्तु वर्षो से युद्ध जैसे हालात हैं। मंदिर-मस्जिद विवाद ने केवल लड़ाई झगड़े वैमनस्य, दंगो और साम्प्रदायिकता को ही बढ़ावा दिया। खेल खेला राजनीती ने और झेला सामान्य जनता ने। अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे आपसी सहमति से सुलझाने का सुझाव दिया है, जो एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है।
गोष्ठी में सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था। हिन्दुस्तान के दो हिस्से हुए। पाकिस्तान इस्लामी मुल्क बना और भारत सेकुलर राष्ट्र। कहा कि यह एक जटिल मुद्दा है। यह आपसी बातचीत से हल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट साक्ष्यों के आधार पर निर्णय दे या फिर संसद में इसके लिए कानून बनाया जाये। यह तभी हल हो सकता है।
वरिष्ठ चिकित्सक डा. अतुल अग्रवाल ने तमाम ग्रंथों और शोध का हवाला देते हुए कहा कि मामला कोर्ट में है। अदालत को सबूत चाहिए। सभी सबूत खुद गवाही दे रहे हैं कि वहां राम मंदिर ही था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनायी गयी थी। पुरातत्व विभाग को भी वहां मंदिर के साक्ष्य मिले हैं। ऐसे में वहां भगवान का मंदिर ही बनना चाहिए। विधि शिक्षक डा. शैलेष चैहान ने कहा कि पूजा और इबादत के स्थल बदले जा सकते हैं लेकिन किसी की जन्मभूमि नहीं बदली जा सकती। ऐसे में अयोध्या में श्रीराम का जन्म होने के कारण वहां मंदिर ही बनना चाहिए। उन्होंने मुस्लिम समाज से मंदिर निर्माण में सहयोग की अपील की।
अलीगढ़ मुस्लिम विवि के ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन के अध्यक्ष लाल मोहम्मद ने साफ कहा कि मसले में दो बिन्दु महत्वपूर्ण हैं। पहला राम के प्रति आस्था और दूसरा जमीन का। उन्होंने कहा कि चूंकि सबूत और वैज्ञानिक अध्ययनों की रिपोर्ट कोर्ट के पास हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट जल्द से जल्द सुनवाई करके मामले का फैसला करे। सभी को मान्य होगा।
समाजसेवी खलील कादरी ने भी दो टूक कहा कि यह मुद्दा कोर्ट ही हल कर सकता है, इसे अवाम हल नहीं कर सकती। वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश यादव ने कहा कि कानून के ऐतबार से कोर्ट इस पर कभी भी फैसला दे सकता है। लेकिन अदालत के लिए यह भी महत्वपूर्ण होता है कि फैसले के बाद देश का अमन चैन कायम रहे। इसी वहज से माननीय कोर्ट ने पक्षकारों से आपसी सहमति से मामले को सुलझाने का सुझाव दिया है। आंवला से आये अधिवक्ता योगेश माहेश्वरी ने कहा कि रामजन्मभूमि पर श्रीराम के भव्य मंदिर का ही निर्माण होना चाहिए। क्योंकि यह देश की संस्कृति और आस्था का विषय है, साथ ही सभी साक्ष्य भी वहां मंदिर होने के प्रमाण दे रहे हैं।
फरीदापुर चैधरी के इस्लाम सुल्तानी ने वंदेमातरम और भारत माता की जय बोलकर अपने वक्तव्य की शुरूआत की। कहा कि इस्लाम में किसी का दिल तोड़ना पाप है। रामजन्मभूमि पर हिन्दुओं की प्रगाढ़ आस्था है वहां मंदिर का निर्माण ही होना चाहिए। साथ ही वहीं बराबर में एक मस्जिद भी बनायी जानी चाहिए, जिससे मुसलमान भी इबादत कर सकें।
वसीम अहमद ने कहा कि किसी भी मुसलमान को यह अधिकार नहीं कि वह मस्जिद की जमीन को किसी और को देदे। ऐसे में इस मसले का हल कोर्ट के निर्णय से ही हो सकता है। इसके अलावा रक्षपाल बहादुर इंस्टीट्यूके महानिदेशक डा. मनीष शर्मा, समाजसेवी राजनारायण गुप्ता, शिवकुमार बरतरिया, भाजपा नेता पवन अरोड़ा, कलाकार जहीर अहमद ने भी कोर्ट के निर्णय से ही निर्माण की बात कही। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाज के प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे।