imran khan
                                                                                                                                                                                                         Grphics : BareillyLive

प्रसंगवश : विशाल गुप्ता

इतिहास गवाह है जब भी व्यक्तिगत स्वार्थ को राष्ट्रहित से ऊपर रखा गया है उसकी कीमत हमने अस्मिता दांव पर लगाकर चुकायी है। उसे पुनः प्राप्त करने के लिए हमे तमाम युद्ध करने पड़े हैं। चाहे साढ़े तीन सौ ईसा पूर्व फारसी व्यापारी डरायस का भारत का आगमन हो या उसके तत्काल बाद ही एलेक्जेण्डर यानि सिकन्दर का भारत पर आक्रमण।

समृद्ध भारतीय संस्कृति और मजबूत भारतीय संस्कारों के बावजूद कुछ जयचंदों और अम्बिराजों के विदेशियों के हाथों खेलने के कारण भारतीय स्वतंत्रता दांव पर लगी है। भारत पर जब भी किसी विदेशी आक्रांता ने आक्रमण करने या भारत के खिलाफ षडयंत्र किया है, उसे किसी भारतीय के कंधे का सहारा ही मिला है। ऐसे में यदि शत्रु ज्ञात हो तो उसके मंसूबे जग जाहिर हों तो और अधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है।

पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान की शख्सियत किसी से छिपी नहीं है। वह एक खिलाड़ी के तौर पर महान हो सकते हैं लेकिन एक राजनेता के रूप में उनके कार्यकलाप पूरी तरह भारत विरोधी रहे हैं। उनकी पार्टी की नेता खुलेआम भारत पर परमाणु बम गिराने की बात कहती हैं। उन पर कोई अंकुश लगाने की जगह इमरान खान उन्हें अपनी कैबिनेट में प्रमुख स्थान देते हैं।

और बढ़ गया कपिल देव और सुनील गावस्कर का सम्मान

इमरान खान ने अपने शपथ ग्रहण समरोह में भारत से तीन हस्तियों को आमंत्रित किया। तीनों ही पूर्व क्रिकेटर हैं। भारत को पहला विश्व कप जिताने वाले कप्तान कपिल देव, विश्व के महानतम बल्लेबाजों में एक सुनील मनोहर गावस्कर और नवजोत सिंह सिद्धू। इनमें से कपिल देव और गावस्कर ने पहले सरकार की अनुमति की बात कही और फिर व्यक्तिगत कारण बताकर पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया। दोनों ने भारतीय अस्मिता की रक्षा की। दोनों का यह फैसला भारत की वर्तमान नीति का अनुसरण करता दिखायी दिया। दोनों ही कप्तानों ने दिखाया कि व्यक्तिगत निमंत्रण या सम्मान किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय अस्मिता से ऊपर नहीं है। दोनों महान खिलाड़ियों का पाकिस्तान न जाने का यह निर्णय इसलिए और भी सम्मानीय हो जाता है कि उन पर कोई दबाव नहीं था। वह किसी ऐसे पद पर नहीं हैं जो उन पर पाबंदी लगाये। इस एक फैसले ने भारतीय राष्ट्रवादियों की दृष्टि में कपिल देव और सुनील गावस्कर का सम्मान और बढ़ गया।

राष्ट्र के लिए चिन्तन का प्रश्न है सिद्धू का पाकिस्तान जाना

इसके विपरीत नवजोत सिंह सिद्धू ने निमंत्रण मिलते ही अति उत्साह में वहां जाने की घोषणा कर दी। पहुंच भी गये। वह भी तब जबकि वह पंजाब सरकार में मंत्री हैं। मूलतः यह एक राजनीतिक फैसला था। भारतीय जनता पार्टी का विरोध करते हुए वह कब भारत की मूल भावना के विरोधी हो गये, पता ही नहीं चला। वह कांग्रेस से विधायक और मंत्री हैं। ऐसे में भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध उनका दायित्व बन जाता है। लेकिन यह विरोध यदि उन्हें शत्रु के खेमे में खड़ा कर दे तो राष्ट्र के लिए यह चिन्तन का प्रश्न हो जाता है।

सिद्धू का पाकिस्तान जाना, वहां पाक अधिकृत कश्मीर के तथाकथित राष्ट्रपति के बगल में बैठना, पाक सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से गले मिलकर उन्हें शांति चाहने वाला बताना कुछ प्रश्न छोड़ जाता है। इस सबके बाद यह कहना कि जो प्यार और सम्मान उन्हें जीवन भर नहीं मिला वह पाकिस्तान में दो दिनों में मिल गया। भारतीय संविधान के तहत शपथ लेकर मंत्री बने व्यक्ति का ऐसा वक्तव्य और भी गंभीर हो जाता है।

ऐसे में नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने करोड़ों प्रशंसकों का सीधे सीधे अपमान किया है। यदि उन्हें पाकिस्तान में इतना अधिक सम्मान और प्यार मिला जो भारत में आजीवन नहीं मिला तो उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता लेकर वहीं से चुनाव लड़ना चाहिए।

अब ये कांग्रेस नेतृत्व को तय करना है कि क्या वह सिद्धू के वक्तव्य से सहमत हैं। क्या कांग्रेस हाईकमान की स्वीकृति थी उनके पाकिस्तान जाने में? यदि नही ंतो ऐसे वक्तव्यों पर सिद्धू के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाएगा?

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