बरेली। गरुण डिवीजन के जनरल ऑफिसर आफ कमाण्ड मेजर जनरल मनोज कुमार कटियार ने बुधवार को कहा कि सेना पूरी तरह तैयार है। देश की सीमाएं पूर्णतयः सुरक्षित हैं। वह सिग्नल रेजीमेण्ट के जवानों की 1048 किमी की साईकिल रैली के समापन अवसर पर पत्रकारों से बात कर रहे थे।
मेजर जनरल कटियार ने कहा कि भारत-चीन के बीच कुछ स्थानों पर सीमा स्पष्ट नहीं है। वहां दोनों देशों की सेनाएं नियमित रूप गश्त करती हैं। भारत-चीन सीमा पर कोई घुसपैठ नहीं है। एक सवाल के जवाब में कहा कि सेना का आधुनिकीकरण एक निरन्तर चलने वाला प्रोसेस है। इन दिनों भी यह चल रहा है।
सेना की जवानों की साइकिल रैली पर बोले- गरुण डिवीजन की साइकिल रैली में जवानों ने 1048 किमी का सफर पूरा किया है। ये एक दुर्गम कार्य है, जिसे हमारे जवानों से सुगमता से पूरा किया है। इस 10 दिन की साइकिल यात्रा में मैदान से शुरू कर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में स्वच्छता ही सेवा का संदेश जवानों ने दिया। इसके अलावा इस मार्ग में पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों से भी साइकिल रैली में गये जवानों ने हालचाल जाना।
इससे पूर्व साइकिल रैली से लौटी टीम का स्वागत जनरल कटियार के साथ सिगनल रेजीमेण्ट के सीओ कर्नल मनोज सिंह सिलोट ने झण्डा दिखाकर किया। उन्होंने टीम के प्रत्येक सदस्य के पास जाकर उसके अनुभव जाने और बधाई दी। इस अवसर पर मेजर राजदीप सिंह, मेजर शर्मा, समेत अनेक अधिकारी एवं बड़ी संख्या में जवान उपस्थित रहे।
ये जवान गये थे साइकिल रैली में
रैली कैप्टन नीलेश शुक्ला के नेतृत्व में गयी थी। इसमें नायब सूबेदार राजेन्द्र कुमार, ए.केख् सिंह, पंकज राय, ए.के. वर्मा, राम ब्रजेश, बी.राजू, सौरभ, राजेन्द्र, सागर निर्मलकर, पंकज सामंत, एसएस धामी, सीके सामंत राय और रोहित पाटिल शामिल रहे।
जनता के उत्साहवर्धन से खो गयी थकान
दुर्गम पहाड़ों पर साइकिल यात्रा कर लौटे इन जवानों का कहना था कि रास्ते में लोगों का बेइंतहा प्यार मिला। लोगों ने जगह-जगह स्वागत किया। कहा कि सुदूर पहाड़ी गांवों में लोगों प्यार बेमिसाल है। जब वे खुले दिल से तालियां बजाकर स्वागत करते थे तो खुद में कुछ और पैडल तेजी से मारने का जोश भर जाता था। थकान अपने आप गायब हो जाती थी। इस सफर के दौरान लोगों के बीच सेना का स्वच्छता का संदेश दिया तो देश भक्ति की भावना को और मजबूत करने का अवसर मिला। सैनिकों में भी और दुर्गम कार्यों को अंजाम देने की भावना का भी संचार किया।
यह रहा रुट, जो किया कवर
20 अक्टूबर को बरेली से चलकर बनबसा, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा से होते हुए चौबटिया सिली मल्ली होकर लैन्सडॉन पहुंचे। वहां से वापस सिली मल्ली, कालाढूंगी, हल्द्वानी होते हुए बरेली पहुंचे। यह पूरा सफर 1048 किलोमीटर का रहा।