नई दिल्ली। रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अंतिम सुनवाई की तारीख तय कर दी। शीर्ष अदालत अगले साल जनवरी में इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। याचिका में भारत में रह रहे रोहिंग्या लोगों ने उन्हें वापस न भेजने की मांग की है। केंद्र सरकार ने दलील दी है कि मसला देश कीआंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़ा है और अदालत इसमें दखल न दे। रोहिंग्याआें ने अपने कैंप में बुनियादी सुविधाओं की कमी की भी शिकायत की है।
दरअसल, इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि रोहिंग्या जो सीमा के जरिए भारत में प्रवेश चाहते हैं, उनको सीमा से ही वापस भेजा जा रहा है। इसके लिए मिर्च पाउडर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा था कि हम देश को शरणार्थियाें की राजधानी नहीं बनने देंगे। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई भी आए और देश में शरणार्थी के तौर पर रहने लगे।
केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि वह इस समस्या के समाधान के लिए राजनयिक प्रयास कर रही है, इसलिए अदालत को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) के वकील से पूछा था कि क्या ऐसे लोगों को देश में घुसने की इजाजत दी जा सकती है? इस पर एनएचआरसी ने कहा था कि वह केवल उन लोगों के लिए चिंतित है जो बतौर शरणार्थी देश में रह रहे हैं। वहीं एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पूछा था कि किसी शरणार्थी को देश में आने से किस आधार पर रोका जा सकता है।
ये है पूरा विवाद
रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उसे तक नहीं अपनाया है। 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई थी। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है। रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं। ताजा मामला 25 अगस्त 2017 का है जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस पर हमला किया था। इस दौरान में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस हिंसा के बाद से हालात और भी खराब हो गए।
भारत में लगभग40 हजार रोहिंग्या मुसलमान
भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान हैं जो हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश,जम्मू और राजस्थान में रह रहे हैं। चूंकि भारत ने शरणार्थियों को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र की 1951 शरणार्थी संधि और 1967 में लाए गए प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए देश में कोई शरणार्थी कानून नहीं हैं।