नई दिल्ली। देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भारतकी अर्थव्यस्था को लेकर पेश किए जा रहे आंकड़ों पर सवालिया निशान खड़े किए हैं।चेताया है कि कृषि एवं वित्तीय व्यवस्था के दबाव के चलते अर्थव्यवस्था कुछ समय केलिए नरमी के दौर में फंस सकती है। 

सुब्रमण्यम सोमवार को ‘ऑफ काउंसिल : द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकॉनॉमी’ के विमोचन समारोह में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।  नोटबंदी और जीडीपी के आंकड़ों में संबंध स्थापित करते हुए कहा उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण पैदा हुई उलझन के दोहरे पक्ष रहे हैं। एक, क्या जीडीपी के आंकड़ों पर दिखे इसके प्रभाव ने एक लचीली अर्थव्यवस्था को प्रतिबिंबित किया है। दूसरा, वृद्धि दर के आंकड़ों ने आधिकारिक डेटा संग्रह प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किए हैं। 

उन्होंने जोर दकर कहा कि नोटबंदी और जीएसटी लागू किये जाने से अर्थव्यस्था की रफ्तार मंद हुई। बजट में GST (वस्तु एवं सेवा कर) राजस्व वसूली का लक्ष्य तर्कसंगत नहीं है। जीएसटी की रुपरेखा और बेहतर तरीके से तैयार की जा सकती थी।

सुब्रमण्यम ने कहा, “ये उलझनें खासतौर से इस सच्चाई से पैदा होती हैं कि यह कदम राजनीतिक रूप से क्यों सफल हुआ, और जीडीपी पर इसका इतना कम असर हुआ… क्या यह ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हम जीडीपी को ठीक से माप नहीं रहे हैं, अनौपचारिक क्षेत्र को नहीं माप रहे हैं, या यह अर्थव्यवस्था में मौजूद लचीलेपन को रेखांकित कर रहा है?”

सुबह्मण्यम ने अपनी किताब में लिखा है “नो,टबंदी के पहली छह तिमाहियों में औसत वृद्धि दर आठ प्रतिशत थी और इसके बाद सात तिमाहियों में औसत वृद्धि दर 6.8 फीसद रही। इसका प्रमुख कारण भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था की एक व्यापक समझ में छिपा हुआ है, इस बारे में कि लोग वोट कैसे करते हैं “

पूर्व आर्थिक सलाहकार ने कहा, “मुझे लगता है कि जीडीपी की गणना एक बहुत ही तकनीकी काम है और तकनीकी विशेषज्ञों को ही यह काम करना चाहिए। जिस संस्थान के पास तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हैं, उसे इसमें शामिल नहीं होना चाहिए।”

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