गौरतलब है कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद (अयोध्या विवाद) की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी। इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूर्ण और न्यायमूर्ति यूयू ललित शामिल हैं। संविधान पीठ 10 जनवरी से इस मामले की सुनवाई करेगी। इससे पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर मामले को सुन रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्षों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था। शीर्ष अदालत ने 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठ भेजने से इंकार कर दिया था। मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी।
गौरतलब है कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक मुकदमे के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला था। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
हाई कोर्ट ने टाइटिल विवाद में दिया था फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को टाइटल विवाद में फैसला दिया था। इस फैसले में कहा गया था कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिए जाएं जबकि बाकी की एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थीं। दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। उसके बाद से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।