नयी दिल्ली। यूपी की सियासत में कांग्रेस ने अपना तुरुप का पत्ता चल दिया है। एक बड़े घटनाक्रम के तहत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को औपचारिक रूप से कांग्रेस में एंट्री दे दी गयी। उन्हें पार्टी ने महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा है। कांग्रेस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वह फरवरी के पहले हफ्ते में कामकाज शुरू करेंगी। इस तरह प्रियंका गांधी को कांग्रेस में पहली बार आधिकारिक रूप से कोई जिम्मेदारी सौंपी गई है। अभी तक वह गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली रायबरेली और अमेठी सीटों पर ही कांग्रेस का प्रचार करती थीं। हालांकि इससे पहले प्रियंका गांधी हमेशा सक्रिय राजनीति में आने की बात को टालती रहीं।
इसके साथ ही कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया है। इस तरह कांग्रेस ने पहली बार एक राज्य में दो महासचिव बनाये हैं। इससे पहले यूपी में कांग्रेस के महासचिव गुलाब नबी आजाद थे। उनको तत्काल प्रभाव से हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया गया है। साथ ही केसी वेणुगोपाल कांग्रेस जनरल सेक्रेट्री (संगठन) बनाया गया है। वह इसके साथ कर्नाटक के जनरल सेक्रेट्री बने रहेंगे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने कहा कि ’’प्रियंका जी को जो जिम्मेदारी दी गई है, वह बेहद अहम है। इसका प्रभाव केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी होगा।’’
राहुल नाकाम रहे तो प्रियंका को लाया गया : भाजपा
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी के नाकाम होने के कारण प्रियंका गांधी को कांग्रेस पार्टी में लाया गया है। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कि प्रियंका का महासचिव बनना कांग्रेस का निजी मामला है। साथ ही कहा कि कांग्रेस हमेशा से परिवारवाद की राजनीति करती है।
विश्लेषकों के मुताबिक सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से इसको बड़ा कदम बताया जा रहा है। क्योंकि कांग्रेस ने ’एकला चलो रे’ की रणनीति के तहत आगामी लोकसभा चुनावों में सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के उतरने के गहरे सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। गठबंधन से बाहर रहने के बाद कांग्रेस लगातार कह भी रही है कि वह इस बार 2009 के लोकसभा चुनावों की तर्ज पर यूपी में चौंकाने वाले नतीजे देगी। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को यूपी में 21 लोकसभा सीटें मिली थीं.
अब यूपी में दिखेगा त्रिकोणीय मुकाबला
गौरतलब है कि संगठन की दृष्टि से कांग्रेस की यूपी में बेहद कमजोर स्थिति है। 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को तकरीबन सात प्रतिशत वोट मिले थे। लिहाजा प्रियंका को मैदान में उतारने के कदम को पार्टी संगठन को मजबूत करने के क्रम में देखा जा रहा है। हालांकि इससे यह भी साफ जाहिर होता है कि इस बार यूपी में मुकाबला सीधेतौर पर बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन के बीच नहीं होगा। कांग्रेस के इस कदम के बाद माना जा रहा है कि लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के इस सबसे महत्वपूर्ण राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है।