जॉर्ज फर्नांडिस पिछले आठ साल से गंभीर रूप से बीमार थे। मंगलवार को सुबह उन्होंने दिल्ली स्थित आवास पर अंतिम सांस ली।
नई दिल्ली। समकालीन भारतीय राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस (88) नहीं रहे। पिछले आठ साल से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे अपने जमाने के इस महान समाजवादी नेता ने मंगलवार को सुबह यहां मैक्स अस्पताल में अंतिम संस ली सांस ली। अल्जाइमर से पीड़ित होने के चलते वे काफी समय से बिस्तर पर ही थे। पिछले कुछ समय से वह स्वाइन फ्लू से भी पीड़ित थे। डॉक्टरों ने बताया है कि स्वाइन फ्लू के चलते ही उनकी मौत हुई है। अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में पहली बार केंद्र में कार्यकाल पूरा करने वाली गठबंधन सरकार में वह रक्षा मंत्री रहे। उनके रक्षा मंत्री रहते हुए ही भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। भारतीय संसद की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार उनका जन्म मैंगलोर (कर्नाटक) में तीन जून 1930 को हुआ।
जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार थे। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन में उनकी समान पकड़ थी। उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं। उन्हीं के नाम पर अपने छह संतानों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा। अपने गृहनगर मंगलौर में पले-बढ़े फर्नांडिस को 16 साल की उम्र में पादरी बनने की शिक्षा लेने के लिए एक क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा गया पर चर्च में पाखंड देखकर उनका उससे मोहभंग हो गया। उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में मुंबई (तब बंबई) चले गए। जॉर्ज फर्नांडिस ने खुद बताया था कि इस दौरान वे चौपाटी की एक बेंच पर सोया करते थे और लगातार सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों और श्रमिक आंदोलनों में हिस्सा लेते थे।
एक जबरदस्त विद्रोही की थी शुरुआती छवि
राम मनोहर लोहिया से बेहद प्रभावित जॉर्ज फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी। पतला लंबा चेहरा, बिखरे बाल, मुड़ा-तुड़ा खादी का कुर्ता-पायजामा, साधारण चप्पल और मोटा चश्मा उनती पहचान बन गए थे। देखने में ही वह खांटी एक्टिविस्ट नजर आते थे। देखने में ही वह खांटी एक्टिविस्ट नजर आते थे सन् 1950 तक वे मुंबई टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन चुके थे। कुछ लोग तभी से उन्हें ‘अनथक विद्रोही’ (रिबेल विद्आउट ए पॉज़) कहने लगे थे। जंजीरों में जकड़ी उनकी एक तस्वीर आपातराल की पूरी कहानी बयां करती है।
नई पीढ़ी के लोगों में से बहुत कम ही लोगों को जॉर्ज फर्नांडिस की जानकारी होगी जिनकी एक आवाज पर हजारों गरीब-गुरुबा एकत्र हो जाते थे। देश में थोपे गए आपातकाल के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी और संजय गांधी की नाक में दम कर दिया था। अंततः त्तकालीन सरकार ने उन्हें जेल में ठूंस दिया। गंभीर बीमारिय़ों के चलते पिछले आठ साल से उनकी दुनिया एक बिस्तर तक ही सिमट गई थी।
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अनुसार जॉर्ज फर्नांडिस जैसे ‘बागी नेताओं’ की जरूरत हमेशा रहती है क्योंकि कोई भी देश उनके बिना प्रगति नहीं कर सकता.