नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का फैसला लागू किया है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण के फैसले पर स्टे लगाने के लिए तत्काल आदेश देने की मांग को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत इस तरह की सभी पुरानी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी। गौरतलब है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का फैसला लागू किया है।
बीती 25 जनवरी को भी सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण की व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। उस समय भी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने 10 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। सवर्णों को नौकरियों में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में यूथ फॉर इक्विलिटी सहित अन्य की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके यह जवाब मांगा है।
संविधान संशोधन को दी गई है चुनौती
इन याचिकाओं में संविधान संशोधन को चुनौती दी गई है। कहा गया है कि ये संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है और आर्थिक आधार पर आरक्षण नही दिया जा सकता। एक याचिका में संविधान संशोधन को निरस्त करने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि एकमात्र आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस विधेयक से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होता है क्योंकि सिर्फ सामान्य वर्ग तक ही आर्थिक आधार पर आरक्षण सीमित नहीं किया जा सकता है और 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती।
गौरतलब है कि सवर्ण आरक्षण बिल को नरेंद्र मोदी सरकार के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसको मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही सरकारी नौकरियों और शैक्षाणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। महाराष्ट्र समेत कुछ राज्यों ने इसे लागू भी कर दिया है।