भारत ने पहली बार अक्टूबर 2010 अपने पहले लेजर गाइडेड बम यानी सुदर्शन को तैयार किया था। यह बम आईआरडीई द्वारा डीआरडीओ की लैब में तैयार किया गया था।
नई दिल्ली। भारत ने पुलवामा आतंकी हमले का बदला मंगलवार को सर्जिकल स्ट्राइक-2 के जरिये ले लिया। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर व पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा प्रांत के बारकोट में हुई इस कार्रवाई के बाद जितनी चर्चा भारत के युद्धक विमान मिराज 2000 की है, उससे ज्यादा इस विमानों से दागे गए लेजर गाइडेड बमों की हो रही है। लक्ष्य पर अचूक वार कर उसे तबाह कर देने वाले इस बम को भारतीय सेना ने सुदर्शन नाम दिया है और यह पूर्ण स्वदेशी है जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठम (डीआरडीओ) की लैब में विकसित किया गया है। लेजर गाइडेड बम को सबसे पहले वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने तैयार किया था।
भारत ने पहली बार अक्टूबर 2010 अपने पहले लेजर गाइडेड बम यानी सुदर्शन को तैयार किया था। यह बम आईआरडीई द्वारा डीआरडीओ की लैब में तैयार किया गया था। इसको बनाने में आईआईअी दिल्ली और बीईएल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस बेहद सटीक और घातक मार करने वाले बम को खासतौर पर वायुसेना के लिए ही तैयार किया गया है। डीआरडीओ ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2006 में की थी। इसका उद्देश्य एक ऐसी एडवांस्ड लेजर गाइडेड किट का विकास करना था जो 450 किलोग्राम के बम को सटीक जगह पर गिराने में सक्षम हो।
2010 में हुआ था पहला परीक्षण
सुदर्शन का पहला परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर में 21 जनवरी 2010 को किया गया था। नौ जून 2010 को राजस्थान की पोकरण टेस्ट रेंज में दोबारा इसका परीक्षण किया गया। इसके बाद भी इसकी सटीकता को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए परीक्षण होते रहे। सुदर्शन को सबसे पहले भारतीय वायुसेना की मिग 27 यूनिट और उसके बाद जेगुवार यूनिट में शामिल किया गया। बाद में इसे सुखोई, मिराज 2000 और मिग 29 में भी शामिल कर लिया गया। इसे भारतीय नौसेना में भी शामिल किया जा चुका है। डीआरडीओ अब तक करीब 50 सुदर्शन लेजर गाइडेड बम बना चुका है। सुदर्शन बम की क्षमता नौ किलोमीटर तक मार करने की है। एयरोनॉटिकल डेवलेपमेंट इस्टेबलिशमेंट (एडीई) अब नेक्सट जेनरेशन के लेजर गाइडेड बम का विकास कर रहा है जिसकी क्षमता 50 किमी तक होगी।
कारगिल युद्ध के समय भी चर्चा में रहे थे लेजर गाइडेड बम
पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में भी लेजर गाइडेड बम चर्चा में रहे थे लेकिन वे स्वदेश में न बने होकर आयातित थे। दरअसल कारगिल युद्ध में इनकी सटीक मारक क्षमता साबित होने पर ऐसे ही बम को भारत में बनाने पर विचार शुरू हुआ था। अमेरिका के अलावारूस, ब्रिटेन और फ्रांस भी लेजर गाइडेड बम बना चुके हैं।