बरेली। सनातन धर्म में ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से ज्येष्ठ अमावस्या तक तीन दिनी अखंड पातिव्रत्य (सुहाग की दीर्घायु) कामना के लिए वट सावित्री व्रत की परंपरा है। वट सावित्री व्रत कोई भी स्त्री कर सकती है। इस बार यह व्रत पर्व 15 से 17 मई तक पड़ रहा है। इसमें त्रयोदशी का व्रत 15 को, चतुर्दशी का 16 को अमावस्या का 17 किया जाएगा। इसका पारन 18 को सुबह 9.15 बजे के बाद ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा लगने पर होगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित दिनेश पवन के अनुसार विशेष इस बार ज्येष्ठ अमावस्या दो दिन है। इसमें 17 को श्राद्ध की व 18 को स्नान दान की अमावस्या है। 18 को ही 9.14 के बाद प्रतिपदा लग रही है। इस तिथि पर ही सोमवती अमावस्या का संयोग, अपने आप में अद्भुत फल देने वाला होता है।
व्रत विधान – ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी को प्रात: स्नानादि के उपरांत हाथ में जल, अक्षत, सुपारी आदि लेकर पति की दीर्घायु कामना से वट सावित्री व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसमें तीन दिनी उपवास का संकल्प किया जाता है। सामथ्र्य न होने पर त्रयोदशी की रात भोजन, चतुर्दशी को एक बार फलाहार ल अमावस्या को उपवास कर प्रतिपदा को समापन किया जाता है।
पूजन अनुष्ठान – शास्त्र सम्मत है कि वट वृक्ष के मूल में ब्रहम , मध्य में श्रीहरि एवं अग्र भाग में भगवान शिव का निवास है। इस तिथि विशेष पर वट वृक्ष की छांव में सावित्री-सत्यवान व यमराज का पूजन किया जाता है। व्रती स्त्रियां प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत्त हो जल कलश लेकर वट वृक्ष पर जल अर्पित करती हैं। वट वृक्ष के तने पर रोली-चंदन का टीका कर चावल, चना, गुड़ अर्पित करना चाहिए। मिट्टी से बने सावित्री-सत्यवान व यमराज की प्रतिमाओं पर चंदन-रोली लगाकर विधिवत पूजन करना चाहिए। वट वृक्ष के तने में चारो ओर कच्चे सूत के धागे को हल्दी में रंग कर सात या नौ बार परिक्रमा करते हुए लपेटने का विधान है। सावित्री व्रत कथा भी कही या सुनी जाती है।