बरेली, 11 जनवरी। सोमवार को देर शाम भारतीय जनता पार्टी में जिलाध्यक्ष पद को लेेकर चल रही उहापोह समाप्त हो गयी। भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने रविंद्र राठौर को बरेली जिलाध्यक्ष और उमेश कठेरिया को महानगर अध्यक्ष घोषित कर दिया। माना जा रहा है बरेली में भाजपा के दोनों धड़ों को साधा गया गया है। बड़े नेता के करीबी को बड़ा पद और छोटे के करीबी को छोटा पद सौंपा गया है।
गौरतलब है कि रविंद्र राठौर मंत्री संतोष गंगवार के खेमे के माने जाते हैं तो उमेश कठेरिया को कैंट विधायक राजेश अग्रवाल का करीबी माना जाता है। जिला कमेटी की ओर से नामांकन के बाद जिलाध्यक्ष के लिए नौ नाम भेजे गए थे। इसमें केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार के साले वीरेंद्र गंगवार उर्फ वीरू, रविंद्र सिंह राठौर, प्रशांत पटेल, रामगोपाल मिश्र, धर्मपाल आजाद, अरविंद गौतम, महेश तिवारी, दुर्विजय सिंह शाक्य, अशोक पांडेय शामिल थे।
इनमें से रविंद्र सिंह राठौर को जिलाध्यक्ष बनाया। रविन्द्र राठौर इससे पहले वह नवाबगंज के दो बार पालिकाध्यक्ष रहे हैं। साथ ही पार्टी के क्षेत्रीय महामंत्री के पद पर थे। इसके अलावा पालिकाध्यक्ष शहला ताहिर से उनका छत्तीस का आंकड़ा भी जगजाहिर है।
इसके अलावा महानगर अध्यक्ष के लिए पुष्पेंदु शर्मा, रामगोपाल मिश्र, हर्षवर्धन आर्य, केवल कृष्ण व उमेश कठेरिया के नाम भेजे गए थे। उमेश कठेरिया अनुसूचित जाति, जनजाति मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा वह महानगर में मंत्री रहे। अब दोनों पदाधिकारी पार्टी की जिला एवं महानगर इकाई का गठन करेंगे। यह प्रक्रिया इसी महीने पूरी होने की उम्मीद है।
नये जिलाध्यक्ष रविंद्र सिंह राठौर और महानगर अध्यक्ष उमेश कठेरिया का कहना है कि पार्टी ने जो उन्हें जिम्मेदारी दी है उसका बखूबी निर्वहन करेंगे। पार्टी को और मजबूत बनाएंगे। 2017 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर पार्टी को तराशेंगे। नये कार्यकार्ता जोड़े जायेंगे वहीं पुराने कार्यकर्ताओं का भी सम्मान किया गया जाएगा। निवर्तमान जिलाध्यक्ष राजकुमार शर्मा व निवर्तमान महानगर अध्यक्ष पुष्पेंदु शर्मा का कार्यकाल सबसे अधिक बड़ा रहा। उन्होंने तीन साल ढाई माह तक इस पद पर रहते हुए कार्य किया।
पार्टी सूत्रों के अनुसार जिलाध्यक्ष पद के लिए केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के साले वीरेंद्र सिंह गंगवार उर्फ वीरू भी प्रमुख दावेदार थे। आरोप तो यह तक थे कि मंत्री ने अपने साले को जिला अध्यक्ष बनवाने के लिए काफी पैरवी की मगर मामला खींचतान में फंस गया। खुला विरोध सामने आया तो प्रदेश नेतृत्व ने मंत्री के साले के नाम पर गौर नहीं किया।