बरेली, 25 जनवरी। महिलाओं के प्रति पुरुषों की दोहरी सोच उजागर हो गयी। किस तरह परिवार की गरीबी का दंश महिलाओं को अपनी अस्मिता से चुकाना पड़ता है। किस तरह परिवार का कर्ज चुकाते-चुकाते किसी गरीब बेटी, बहन या पत्नी को क्या-क्या भोगना पड़ता है? कुछ ऐसे ही सवालों पर चिन्तन के लिए छोड़ गया सोमवार को विण्डरमेयर में दिल्ली के कलाकारों द्वारा किया गया नाटक ‘बाड़ा-द स्लाटर हाउस’।
बाड़ा (द स्लॉटर हाउस)..! जी हां, यही नाम है उस नाटक का जिसने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया। महाश्वेता की कहानी ‘दौलती’ पर आधारित इस नाटक को कलाकारों का मंझा हुआ अभिनय बंधुआ वैश्यावृत्ति से मानव तस्करी तक का मार्मिक चित्रण बड़े ही सहज ढंग से कर गया।
बता दें कि दयादृष्टि रंगविनायक रंगमंडल द्वारा विण्डरमेयर में थिएटर फेस्ट का आयोजन किया जा रहा है। इस नाटक का निर्देशन साजिदा ने किया और अभियन किया दिल्ली के ट्रेजर आर्ट ग्रुप के कलाकारों ने। इन कलाकारों के कुशल अभिनय ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर दिया। दर्शक स्तब्ध हुए एकटक बस, मंचन को देखते ही रह गये।
मंचन के दौरान एक डायलाॅग ‘समाज के ठेकेदार, लाला, नेता और अफसर.. कानून बनाते हैं तो यहां आते क्यूं हैं? बंधुआ वैश्याओं को आजादी नहीं मिलती।’ जिस अंदाज में डिलीवर किया गया, वह पुरुषवादी समाज की दोहरी मानसिकता पर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी था। इसी तरह के संवाद पूरे शो के दौरान दर्शकों को चिन्तन और मन्थन कराते रहे।
कहानी एक बंधुआ मजदूर के परिवार की है, जो आजादी के बाद वर्ष 1961 की पृष्ठभूमि से ली गई। कथानक के अनुसार गनौरी नागेसिया का परिवार था, जो गांव के मुखिया परमानंद के यहां बंधुआ मजदूर थे। गनौरी ने परमानंद से 300 रुपए कर्ज लिये थे, जिसके बदले परमानन्द ने नागेसिया की बेटी दौलती को बड़ी चालाकी से वेश्या बना दिया।
उसे ऐसे बाड़ा में भेज दिया जहां वह हर तरह से कंगाल हो गई। वहां उसे उस जैसी कई अन्य महिलाएं मिलीं। दलित महिलाओं को छूना भी पाप समझने वाला उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता दिखा। इस तरह बंधुआ वैश्यावृत्ति से शुरू होकर वर्तमान में मानव तस्करी तक की कड़वी सच्चाई को बखूबी मंचित किया गया। इस दौरान डॉ. बृजेश्वर सिंह, डॉ. गरिमा सिंह, शिखा सिंह, नवीन कालरा, डा. देवेन्द्र समेत बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।