बरेली। नगर निगम की ‘अत्याधिक स्मार्ट‘ कार्यशैली से ही अपना शहर स्मार्ट सिटी की दौड़ में हर बार पिछड़ता जा रहा है।यहां कोई भी नियम कायदा किसी ‘खास‘ कार्य के लिए ताक पर रखा जा सकता है। मनमानी का आलम यह है कि सूचना के अधिकार के तहत भी अपने ही तरीके से जानकारी दे दी जाती है। निगम के कर्णधारों को न तो न्यायालय के आदेश से मतलब है और न ही किसी नियम से। हां, आम आदमी के लिए सबकुछ नियमों में ही उलझा हुआ है। पिछले ही कुछ दिनों में ही कई मामलों में लोगों को नगर निगम की मनमानी के खिलाफ हाईकोर्ट जाना पड़ा।
केस 01- पीडब्ल्यूडी की जमीन पर बनाने लगे पार्क
किला के दूल्हा मियां मजार के पास राजमार्ग के किनारे लोक निर्माण विभाग की थोड़ी सी जमीन पड़ी है। नगर निगम ने कुछ लोगों को ‘लाभ और नुकसान‘ पहुंचाने के लिए यहां बिना जमीन की मालकियत को जांचे-परखे इस पर पार्क बनाने के लिए अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में टेण्डर निकाल दिया। राज्य वित्त आयोग से प्राप्त धन से इसके लिए व्यवस्था कर दी गयी। साढ़े आठ लाख रुपये का टेण्डर भी दे दिया गया।
टेण्डर पाने वाली ठेकेदार फर्म सत्य साईं कन्स्ट्रक्शन्स ने पिछले दिनों यहां खुदाई शुरू करा दी। तब स्थानीय लोगों ने आपत्ति की। लोगों का कहना है कि यहां पार्क निर्माण से यह जगह संकरी हो जाएगी और यह एक्सीडेण्ट जोन बन जाएगा। इस रास्ते का इस्तेमाल आसपास के मोहल्लों के लोग आने जाने के लिए करते हैं। साथ ही अलखनाथ मंदिर की ओर से आने वाले छोटे चौपहिया और दुपहिया वाहन करते हैं। यहां पार्क की बाउण्ड्री से विजिविलिटी कम हो जाएगी और हर समय जाम के हालात बने रहेंगे।
इन सब आपत्तियों को दरकिनार कर काम चालू रखा गया। इस पर स्थानीय निवासी देवेन्द्र रत्ता ने निगम और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से लिखित शिकायत की। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियन्ता ने नगर निगम के अधिशासी अभियंता से विभाग की जमीन पर पार्क निर्माण के बाबत पूछा तो निगम कर्मचारी बगलें झांकने लगे।
नगर निगम के ड्राफ्टमैन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उक्त सड़क एनएच-24 है, जो लोक निर्माण विभाग की है। नगर निगम बरेली की नहीं है। उन्होंने पार्क निर्माण के बाबत किसी भी जानकारी से इनकार किया।
यहां बता दें कि यदि निगम किसी अन्य की जमीन पर कोई निर्माण कार्य जनहित में कराता है तो नियमानुसार उसे सम्बंधित विभाग से अनापत्ति प्राप्त करनी होती है। इससे पूर्व जिलाधिकारी द्वारा या किसी बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव पारित करना होता है। इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। तब लोक निर्माण विभाग ने तत्काल निर्माण कार्य रोकने को लिखा।
इस बीच देवेन्द्र रत्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने मामले की संजीदगी को देखते हुए याचिका को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया। अब हालात ये हैं कि अच्छी-खासी बनी सड़क को नगर निगम के गैरजिम्मेदार अफसरों की मनमानी से ध्वस्त कर दिया गया। इससे लोगों में आक्रोश है।
केस 02-निजी बिल्डर के हित में खेत में डाल दी सड़क
रामपुर रोड पर परसाखेड़ा के पास नधौसी गांव के खेतों में नगर निगम ने एक प्राइवेट बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए खेतों में सड़क डाल दी। इस पर जनता से टैक्स के रूप में एकत्र किये गये करीब साढ़े 17 लाख रुपये खर्च कर दिये गये।
इस पर जब शहर के लोगों ने नगर निगम से सूचना मांगी तो बताया गया कि टूटे हुए पुराने की रोड की मरम्मत पर 17 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किये गये। यह सड़क पूर्व में कब बनी थी, इसका कोई जवाब नहीं दिया गया। यहां खास बात यह कि सूचना के तहत जो नक्शा खुद नगर निगम के अफसरों ने सूचना मांगने वाले को उपलब्ध कराया है उसमें इस सड़क का कोई जिक्र नहीं है।
केस 03- शिकायतकर्ता के रास्ते कर दिये बंद
‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे‘ की तर्ज पर नगर निगम ने एक और कारनामा किया। वो यह कि दूल्हा मियां मजार के पास पार्क निर्माण के खिलाफ हाईकोर्ट जाने वाले देवेन्द्र रत्ता का रास्ता ही बंद कर दिया।
बता दें कि संजय रत्ता, योगेश रत्ता, देवेन्द्र रत्ता और अजय रत्ता चार भाई हैं। परसाखेड़ा के पास नधौसी गांव में हाईवे के किनारे इनकी करीब 1400 गज जमीन है। इसमें इनके परिवार ने भविष्य में मकान बनाने के लिए छोड़ा हुआ था। चारों भाईयों के लिए पारिवारिक व्यवस्था के तहत निकासी के लिए चार दरवाजे लगा दिये गये थे। इस भूखण्ड की लम्बाई 68 मीटर है। इसके आगे ग्राम समाज की जमीन थी, जो अब नगर निगम के खाते में आ गयी है।
यहां निगम की तीन सौ मीटर लम्बी आड़ी-तिरछी पट्टी है जो कहीं पांच मीटर तो कहीं ज्यादा चौड़ी है। संजय आदि के हाईकोर्ट जाने के खफा नगर निगम ने आनन-फानन में इस करीब तीन सौ मीटर लम्बी जमीन पर संजय रत्ता के प्लाट के आगे पक्की बाउण्ड्री वाल का निर्माण शुरू करा दिया। इससे रत्ता परिवार की भविष्य की योजना चौपट हो गयी। इनके रास्ते बंद हो गये। करोड़ों की जमीन कौड़ियों में बदल गयी। आरोप है कि निगम कर्मचारियों ने देवेन्द्र आदि के दरवाजे भी तोड़ दिये।
इस पर देवेन्द्र समेत चारों भाई फिर हाईकोर्ट पहुंचे। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलीप भोसले और न्यायाधीश यशवंत वर्मा की डबल बैन्च ने सुनवाई की। इस पर निगम के अधिवक्ता ने वहां हरित पट्टी विकसित करने की बात कही। हाईकोर्ट को बताया गया कि यहां जमीन पर पेड़ लगाये जाएंगे। इसी के लिए बैरिकेडिंग की जा रही है। उच्च न्यायालय ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए फरयादियों के रास्ते बंद नहीं करने की बात कही।
यहां खास बात यह कि बैरिकेडिंग के नाम पर बाउण्ड्री वाल का निर्माण हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी के बाद भी जारी रखा गया। अब याचिका कर्ताओं का कहना है कि अगर निगम बाउण्ड्री वाल नहीं तोड़ता है तो वे निगम के अफसरों पर हाइकोर्ट की मानहानि का मुकदमा करेंगे।
ये तीनों मामले नगर निगम द्वारा जनता के पैसे को मनमाने ढंग से खर्च करने तरीके दिखाने के लिए काफी हैं। यहां गौरतलब यह भी है कि अगर ये बाउण्ड्री वाल तोड़ी जाती है तो जनता से टैक्स के रूप में वसूले गये धन के इस दुरुपयोग की जिम्मेदारी किसकी?