ओसाका। “राष्ट्रहित  सर्वोपरि” की नीति पर चलते हुए भारत ने “डिजिटल इकोनॉमी” पर ओसाका घोषणा पत्र हस्‍ताक्षर करने से इन्कार कर दिया है। माना जा रहा है कि भारत ने यह कदम उठाकर अमेरिका और जापान की अगुवाई वाले विकसित देशों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है जो डेटा के सीमा पार प्रवाह पर जोर दे रहे हैं। भारत का कहना है कि “डेटा नए तरह का धन है जिसके लिए विकासशील देशों की जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए।” इस घोषणा पत्र पर दुनिया के 24 देशों और समूहों ने हस्ताक्षर किए हैं।

भारत का यह सख्त कदम ऐसे समय में आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश का डेटा देश में ही संगृहीत करने और डिजिटल व्यापार पर शर्तें लगाने की नीतियों का विरोध किया है। यहां यह बताना जरूरी है कि गूगल. मास्टरकार्ड, वीजा और अमेजन जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत समेत दुनियाभर में डेटा के स्थानीयकरण के खिलाफ लॉबीइंग कर रही हैं।

शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राषट्रपति ट्रंप की मुलाकात के बाद विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि भारत व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था के बीच इंटरफेस के महत्व को रेखांकित करता है। गोखले ने जोर देकर कहा, “डेटा के मामले में विकासशील देशों की जरूरत का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। यह एक नए प्रकार की संपत्ति है।” वहीं ट्रंप ने जी 20 के उद्घाटन सत्र में कहा कि अमेरिका डाटा को स्थानीय स्तर पर रखने की अनिवार्यता के विरोध में है।

भारत और ब्रिक्स समूह के अन्य देशों का मानना है कि डेटा के मुद्दे पर बहुपक्षीय विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दायरे में ही बातचीत होनी चाहिए। हालांकि इसके उलट कई अमेरिकी कंपनियों को लगता है कि डेटा को स्थानीय स्तर पर रखने से उनकी लागत बढ़ेगी। अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने जी5 दूरसंचार नेटवर्क के लचीलेपन और सुरक्षा पर भी जोर दिया। उनका कहना था कि सुरक्षा और समृद्धि के लिए यह जरूरी है।

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