नई दिल्ली। किसी सरकारी नौकरीपेशा व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होने पर लोग दुख जताने के साथ ही सहानुभूति जताते हुए यह भी कहते हैं कि परिवार के किसी सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल जाएगी और गृहस्थी की गाड़ी खिंचती रहेगी। ऐसी सोच रखने वालों को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने जोर का झटका दिया है। कैट ने एक फैसले में साफ किया है कि किसी सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी परिवारीजनों का हक नहीं है। कैट ने यह कहते हुए पिता की जगह नौकरी के लिए 19 साल से इंतजार कर रहे युवक की मांग ठुकरा दी।
कैट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में कहा कि अनुकंपा पर नौकरी इसलिए दी जाती है ताकि कमाने वाले व्यक्ति की अचानक मृत्यु के बाद परिवार की वित्तीय जरूरतें पूरी हो सकें और भुखमरी की नौबत न आए। “कल्याण के लिए शुरू की गई योजना अधिकार नहीं हो सकती।”
यह था मामला
दिल्ली निवासी रमेश चंद डाक विभाग में कार्यरत थे। वर्ष 2001 में उनकी मृत्यु के बाद बड़े बेटे नरेश ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन किया। वर्षों सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद भी नौकरी नहीं मिलने पर नरेश ने कैट में अपील की। कैट ने अपने फैसले में कहा कि परिवार इतने सालों से अपनी आजीविका चला रहा है। ऐसे में अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।