बरेली (विशाल गुप्ता)। राजनीति भी अजीब शय है, यहां दोस्ती और दुश्मनी या फिर खुशी या गम कितने समय तक टिकेगा कुछ नहीं कहा जा सकता है। ये पल दो पल की कहानी होती है। इसका जीता-जागता उदाहरण इस बार के विधानसभा चुनाव में बरेली में खूब देखने को मिला। खासतौर से समाजवादी पार्टी के टिकट वितरण में।
यहां शहर और कैण्ट विधानसभा सीटों पर दो दावेदार थे। पहले दावेदार थे नगर प्रमुख डाॅ. आई.एस.तोमर और दूसरे उनके धुर-विरोधी डाॅ. अनिल शर्मा। हालांकि तीसरे डाॅ. सत्येन्द्र सिंह भी दावेदारों में शामिल थे। ये तीनों ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खासे करीबी माने जाते हैं। ये तीनों ही अपने-अपने दांव-पेचों के सहारे टिकट पाने की जुगत में थे। इस बीच समाजवादी पार्टी के ‘फैमिली ड्रामे‘ के बीच डाॅ. अनिल शर्मा ने नगर निगम के कुछ पार्षदों के सहारे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की अधिकृत लिस्ट में नाम शामिल करवा लिया। लेकिन उनकी ये खुशी कुछ ही घण्टे चल सकी।
डाॅ. अनिल शर्मा ने टिकट कैण्ट से मांगा था लेकिन उन्हें शहर सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। इसी दिन समाजवादी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो गया और शहर और कैण्ट समेत बरेली की 9 में तीन सीटें कांग्रेस के कोटे में आ गयीं। अब शहर से डा. अनिल शर्मा की जगह कांग्रेस के प्रेम प्रकाश अग्रवाल उम्मीदवार बना दिये गये। हालांकि डाॅ. अनिल शर्मा अब पार्टी के सच्चा सिपाही होने का दम भरते हुए नगर निगम में मेयर की सीट पर नजर लगाये बैठे थे। वह अपने उस दांव को लेकर आवश्वस्त नजर आ रहे थे कि उन्होंने अधिकृत सूची में अपना नाम तो शामिल करा ही लिया जबकि डाॅ. तोमर, सीएम के आश्वासन के बावजूद बाहर ही रहे।
डाॅ. तोमर को निगम पार्षदों के विरोध का दांव अखर रहा था, सो उन्होंने अपने प्रभाव का प्रयोग कर सीएम से सम्पर्क साधा। इसका निशाना एमएलए के टिकट के पायदान पर चढ़कर आसन्न मेयर चुनाव में अपना टिकट पक्का करना था।
इसी बीच बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा और कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी में गठजोड़ के अमेठी और रायबरेली की सीटों को लेकर खींचतान शुरू हो गयी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल के संसदीय क्षेत्र होने के नाते कांग्रेस दोनों ही जगहों की दस सीटें छोडने के ‘मूड‘ में नहीं है। बता दें कि कांग्रेस और सपा के बीच गठजोड के तहत 403 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सपा ने गठजोड़ होने से पहले पांच प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिये थे लेकिन अब तक कोई नाम वापस नहीं लिया गया है। दोनों ही पक्षों के बीच इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि कांग्रेस को छह और सपा को चार सीटें मिलेंगी। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता अमेठी या गौरीगंज में से कोई भी सीट देने को तैयार नहीं हैं जबकि सपा यहां से पहले ही प्रत्याशी घोषित कर चुकी है।
रायबरेली की सरैनी सीट का उदाहरण देते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि स्थिति और उम्मीदवार के जीतने की संभावना का आकलन किये बगैर उम्मीदवार उतारने का मतलब बसपा की मदद करना होगा। उन्होंने कहा कि गठजोड के दोनों साझेदारों को हर सीट पर एक दूसरे के मजबूत और कमजोर पहलुओं का आकलन करना चाहिए।
इसी सीट की खींचतान का फायदा डाॅ. तोमर को मिला और पार्टी ने उन्हें आज ही आनन-फानन में पर्चा भरने को कह दिया। हालांकि यह सशर्त है। अगर रायबरेली की सीट कांग्रेस के पास जाती है तो डाॅ. तोमर बरेली से प्रत्याशी रहेंगे जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी नवाब मुजाहिद नाम वापस लेंगे। इसके विपरीत यदि रायबरेली की सरैनी सीट सपा के पास ही रहती है तो डाॅ. तोमर को नाम वापस लेना होगा।
अब अगर उन्हें नाम वापस लेना भी पड़ा तो भी उनका तीर निशाने पर लगा…। वह स्थानीय स्तर पर अन्य नेताओं के मुकाबले अपना वर्चस्व सिद्ध करने में तो कामयाब रहे ही और नगर निगम के चुनाव भी जल्द ही होने वाले हैं।