गुवाहाटी। (India-China Face-off) लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बीते मई से चल रहे गतिरोध के बीच भारत ने पूर्वोतर खासकर अरुणाचल प्रदेश से लगी एलएसी पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, जून में पूर्वी लद्दाख के गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक पूर्वोत्तर में तैनात किए गए हैं। गौरतलब है कि डोकलाम भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में ही स्थित हैं जहां करीब 2 साल पहले दोनों देशों के सैनिक महीनों आमने-सामने रहे थे।

लद्दाख में जून में हुई हिंसक झड़प एशिया की दो बड़ी ताकतों के बीच हाल के वर्षों की सबसे बड़ी खूनी झड़प थी जिसमें बिना एक भी गोली चले दोनों देशों के 60 से अधिक सैनिक मारे गए थे। यही वजह है कि भारत एलएसी पर लगातार सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है। चीनी सैनिकों ने अभी 29-30 अगस्त की दरम्यानी रात, 31 अगस्त और 1 सितंबर को भी पैंगोंग इलाके में भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की थी लेकिन भारतीय सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया।

अरुणाचल प्रदेश के अंजाव जिले में भारतीय सैनिकों की हलचल तनातनी बढ़ने का संकेत दे रही है लेकिन सरकार के साथ-साथ सैन्य अधिकारियों ने इससे इन्कार किया है। अंजाव की चीफ सिविल सर्वेंट आयुषी सुडान ने कहा, ‘सैन्य मौजूदगी निश्चित तौर पर बढ़ी है लेकिन जहां तक घुसपैठ (चीन) की बात है तो इस तरह की कोई भी पुष्ट रिपोर्ट नहीं है।’ उन्होंने आगे कहा कि वहां भारतीय सेना की कई बटालियनें तैनात हैं। उन्होंने टेलिफोन पर बताया, ‘गलवान की घटना के बाद से ही सैन्य तैनाती बढ़ी है लेकिन उससे पहले से ही तैनाती बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।’

अरुणाचल प्रदेश 1962 में भारत-चीन के बीच हुई जंग के केंद्र में रहा था। अब सुरक्षा विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यह एक बार फिर दोनों देशों के बीच तनाव का केंद्र बन सकता है। हालांकि, भारतीय सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल हर्षवर्धन पांडे ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। इलाके में जवानों का आना नियमित रोटेशन का हिस्सा है। पांडे ने आगे कहा, ‘असल में यह यूनिट्स में हो रहा बदलाव है। यह हमेशा होता है, इसमें कोई नई बात नहीं है। अगर अभी की बात करें तो इस मोर्चे पर चिंता की कोई बात नहीं है।’

दूसरी चरफ अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सदस्य तापिर गाओ ने बताया कि चीनी सैनिक नियमित तौर पर भारतीय इलाकों में घुसपैठ का प्रयास कर रहे हैं। अंजाव जिले के वैलोंग और चगलागम इलाके को सबसे ज्यादा संवेदनशील बताते हुए गाओ ने कहा, ‘अब यह नियमित बात हो गई है, इसमें कुछ भी नया नहीं है।’

1962 की जंग के दौरान भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों को वैलोंग में रोक दिया था जबकि उनकी तादाद बहुत ज्यादा थी। इस इलाके में पहाड़, घास के मैदान और तेज बहाव वाली नदियां हैं। अब केंद्र सरकार इस इलाके में बस्तियां बसाने और सड़कों को बनाने पर फोकस कर रही है। विवादित इलाके में गांवों की श्रृंखला बसाने की योजना की तरफ इशारा करते हुए सुजान ने कहा, “हम ग्रामीणों के लिए और ज्यादा संभावनाओं और अवसरों को पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह लोगों को फिर से बसाने के लिए है।”

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