नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी कारगर है या नहीं, इसे लेकर दावे-प्रतिदावे किए जाते रहे हैं। भारत में सबसे पहले दिल्ली सरकार ओर से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कोरोना संक्रमण के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी के अच्छे परिणाम आने का दावा किया था। लेकिन, अब देश में चिकित्सा अनुसंधान के सबसे बड़े और नियंत्रक  इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने कोरोना वायरस (कोविड-19) संक्रमण के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी के प्रभावी होने के दावों को खारिज कर दिया है। आइसीएमआर के मुताबिक, उसकी ओर से कराए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि “प्लाज्मा थेरेपी न तो कोरोना वायरस (कोविड-19) पीड़ितों में मौत के खतरे को कम करने में मददगार है और न ही किसी की हालत गंभीर होने से रोकने में कारगर है।”

प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने वाले व्यक्ति का प्लाज्मा दूसरे रोगी को चढ़ाया जाता है यानी रोग से उबर चुके मरीज के शरीर में बने एंटीबॉडी की मदद से दूसरे रोगी के संक्रमण को ठीक किया जाता है। अध्ययन के अनुसार, देशभर के 39 सरकारी और निजी अस्पतालों में 22 अप्रैल से 14 जुलाई 2020 के दौरान कोरोना वायरस के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी के प्रभाव पर गौर किया गया था। इन जगहों पर कुल 464 कोरोना संक्रमित रोगियों पर किए गए शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है। इन रोगियों में से 235 को प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी जबकि बाकी मरीजों का सिर्फ मानक के तहत उपचार किया गया था।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकाल के तहत गत 27 जून को मध्यम रूप से संक्रमित लोगों पर प्लाज्मा थेरेपी आजमाने की अनुमति दी गई थी। हालांकि इस नए अध्ययन का कहना है कि “प्लाज्मा थेरेपी का मृत्युदर या संक्रमण की गंभीरता को कम करने से कोई लेना-देना नहीं है।”

इस बीच, अमेरिका के चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया के शोधकर्ताओं ने कोरोना पीडि़त बच्चों पर प्लाज्मा थेरेपी को सुरक्षित और प्रभावी होने का दावा किया है। यह अध्ययन अभी छोटे पैमाने पर किया गया था। उनका कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण से गंभीर रूप से पीडि़त बच्चों पर अभी तक कोई थेरेपी सुरक्षित और प्रभावी नहीं पाई गई है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डेविड टेची ने कहा कि कुछ बच्चों में संक्रमण गंभीर हो सकता है। ऐसे मामलों में प्लाज्मा थेरेपी को आजमाया जा सकता है।

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