बरेली (विशाल गुप्ता)। करवट ले रहे समाज में राष्ट्रवादी सोच से अपने बरेली शहर की राजनीतिक फिजां भी बदलती दिख रही है। इसकी बानगी आईएमए (IMA) चुनाव में भी देखने को मिली। कभी साइकिल पर बिना बैठे ही उसकी शानदार सवारी करने वाले और शहर की राजनीति के पुरोधा रहे डॉ. आई.एस. तोमर के गुट की इस बार आईएमए चुनाव (IMA Election 2020) में करारी हार हुई। उनके तमाम आशीर्वाद और सहयोग के बावजूद उनका प्रत्याशी अब तक से सबसे बड़े अंतर से हार गया।
हालांकि यह प्रत्याशी इस चुनाव से पहले तक संघ के कार्यक्रमों में पूर्ण गणवेश में देखा जाता रहा है। ऐसे में कुछ राजनीतिक पंडित इसे पूर्व मेयर के राजनीतिक सूर्य का अवसान मान रहे हैं तो कुछ इसे मौके पर चौका लगाने के चक्कर में काली टोपी से लाल टोपी पहनने वाले डॉ. विनोद पागरानी की मौकापरस्ती की हार कह रहे हैं।
आईएमए का चुनाव रविवार को शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गया। पिछले कई सालों से आईएमए चुनाव में दो गुट स्पष्ट दिखायी देते रहे हैं। इनमें एक पूर्व मेयर और आईएमए अध्यक्ष रहे डॉ. आई.एस.तोमर का गुट है और दूसरा उनका विरोधी गुट, जिसका नेतृत्व कई साल से वरिष्ठ हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉ. सत्येन्द्र सिंह करते दिख रहे हैं। यहां खास बात यह कि डॉ. तोमर और डॉ. सत्येन्द्र दोनों ही समाजवादी पार्टी की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। खरी बात कहने के लिए मशहूर डॉ. सत्येन्द्र कुछ समय पहले समाजवादी पार्टी को अलविदा कहकर भाजपा की ओर चले गये थे। हालांकि बाद में सपा हाईकमान के मनाने पर वह फिर सपा में आ गए।
खैर! इस बार का आईएमए चुनाव कई मायनों में खास दिखायी दिया। चुनाव कोरोना काल में हुआ, इसके बावजूद सर्वाधिक वोटिंग हुई। अध्यक्ष पद पर विजयश्री राष्ट्रवादी डॉक्टर के रूप में मुखर डॉ. विमल भारद्वाज की हुई। ये जीत भी अब तक की सबसे बड़ी जीत यानि 85 वोटों के अन्तर से हुई जबकि पिछले अनेक वर्षों से हार-जीत का अन्तर 5-10 वोटों तक ही रहता था।
डॉ. तोमर का आशीर्वाद प्राप्त प्रत्याशी को 200 से अधिक वोट मिलना तय माना जाता रहा है। पहले वोटिंग केवल 450 से लेकर 500 के बीच होती थी लेकिन इस बार कुल 792 डॉक्टरों में से 750 वोटर सूची में शामिल हुए थे। इनमें से 600 से अधिक ने वोट डाला। इस झमाझम वोटिंग में डॉ. तोमर के समर्थित प्रत्याशी डॉ. विनोद पागरानी को 192 वोट ही मिल सके। विजेता रहे डॉ. विमल भारद्वाज को 277 वोट मिले।
रिकार्ड मतदान के बीच इसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि जीते प्रत्याशी डॉ. विमल हों या डॉ. सत्येन्द्र या चुनाव समिति के संयोजक रहे डॉ. रवीश, सभी आईएमए में गुटबाजी को ऊपरी तौर सिरे से नकारते दीख रहे हैं लेकिन डॉक्टरों और उनके जानने वालों में चर्चा आम है कि आईएमए में नई सोच का नया सूरज उग रहा है।
शहर की राजनीति पर असर
डॉ. तोमर का आईएमए में घटता प्रभाव शहर की राजनीति का भी संकेत दे रहा है। 2022 में विधानसभा चुनाव होना है। डॉ. तोमर जब पहली बार मेयर बने थे तब से ही उनका राजनीतिक कद निरंतर बढ़ता दिखायी दिया था। हालांकि बाद में वह विधानसभा चुनाव हार गए लेकिन दोबारा मेयर बने। डॉ. तोमर की जीत के चलते माना जाता था कि आईएमए यानि शहर के डॉक्टरों पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत है। इसी के सहारे वे डॉक्टरों के समर्थन को अपने पक्ष में वोट के रूप मे बदवाने में सफल रहते थे। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं दिखा। माना जा रहा है कि बीते चार सालों से सत्ता से बाहर चल रही सपा अगले नगर निगम चुनाव में डॉ. तोमर का विकल्प खोजेगी।