प्रथम रूप माँ शैलपुत्री ,शारदीय नवरात्र 2020, Mother Shailputri ,Sharadiya Navratri 2020,

शारदीय नवरात्र 2020 : नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का है। नवरात्र में माँ दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है। शारदीय नवरात्र अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है।

इस बार माँ दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा प्रतिपदा 17अक्टूबर 2020(शनिवार) को हैं। नवरात्र के नौ दिन दुर्गा माँ के नौ रूपों को समर्पित होते हैं माँ शैलपुत्री यह रूप देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं।

शैलपुत्री पूजा मुहूर्त-घटस्थापना मुहूर्त :06:23:22 से 10:11:54 तकअवधि :3 घंटे 48 मिनट को हैं।
देवी शैलपुत्री की पूजा से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया होती है जिसको जानने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें –

शारदीय नवरात्रि 17अक्टूबर से, ऐसे करें घटस्थापना जानिये- शुभ मुहूर्त

शैलपुत्री का रूप
• माथे पर अर्ध चंद्र
• दाहिने हाथ में त्रिशूल
• बाएँ हाथ में कमल
• नंदी बैल की सवारी

शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी (सती) और दक्ष की पुत्री थीं। एक बार जब दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन कराया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शंकर को नहीं। उधर सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो रही थीं। शिवजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन उन्हें नहीं; ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।

सती जब घर पहुँचीं तो वहाँ उन्होंने भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव देखा। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक शब्द कहे। इससे सती के मन में बहुत पीड़ा हुई। वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया। फिर यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माँ की सवारी वृष है तो उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है।

मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

स्तुति: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

नवरात्रि के प्रथम दिवस की आप सभी को https://bareillylive.in की तरफ़ से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

By vandna

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