बरेली। मानव सेवा क्लब के तत्वावधान में समग्र क्रांति के महानायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 118वीं जयंती पर एक गोष्ठी का आयोजन इंदिरा नगर स्थित वेद प्रकाश के आवास पर हुआ।

कार्यक्रम के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने कहा कि अमेरिका प्रवास के समय जेपी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुए। एनएन राय के लेखों ने उनके विचारों को उद्वेलित किया। एक समय ऐसा आया कि उन्हें गांधी जी के आंदोलन के तरीके अपूर्ण लगने लगे और समाजवाद भारत को स्वतंत्र कराने का त्वरित मार्ग लगने लगा। कालांतर में भारत के समाजवादियों के कार्यकलाप और सोवियत संघ की कार्यप्रणाली ने उनका मोह भंग कर दिया और वह समाजवादी विचारधारा से सर्वोदय की ओर उन्मुख हो गए।

लोकतंत्र सेनानी डॉ. सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि जयप्रकाश नारायण समाजवाद को भारत की समस्याओं का समाधान मानते थे। समाजवाद का अर्थ उनके लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की स्थापना था। अपनी पुस्तक “सोशलिज्म टू सर्वोदय” में उन्होंने लिखा है “क्रांति का मार्क्सवादी दर्शन गांधी जी के सविनय अवज्ञा और असहयोग पद्धति की अपेक्षा अधिक निश्चित तथा शीघ्रगामी मालूम हुआ…। उसी समय मार्क्सवाद ने समता और बंधुत्व की एक और ज्योति मेरे लिए जगा दी। केवल स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं थी। इसका अर्थ होना चाहिए- सबकी जो निम्नतम स्तर पर है उनकी भी स्वतंत्रता। इस स्वतंत्रता में शोषण से भुखमरी और दरिद्रता से मुक्ति भी सम्मिलित होनी चाहिए।”

क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष वेद प्रकाश कातिब ने बताया कि जेपी द्वारा चलाये गए छात्र  आंदोलन के वह भी एक हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जेपीने सामूहिक स्वामित्व और सहकारी नियंत्रण की वकालत की तथा भारी यातायात, शिपिंग, खनन और भारी उद्योगों के राष्ट्रीयकरण की मांग की। हालांकि समाजवाद की प्रशंसा करने वाले जयप्रकाश सोवियत संघ वाले समाजवाद को ज्यों का त्यों भारत में स्थापित करने के पक्ष में नहीं थे। वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने कहा कि जेपी के अनुसार समाजवाद मात्र पूंजीवाद का निषेध नहीं है क्योंकि जहां पूंजीवाद है, उसको समाप्त करके समाजवाद की स्थापना की जा सकती

रजनीश सक्सेना ने कहा कि साधन और साध्य के बीच एक गहरा संबंध है। भारत में समाजवाद लाने के लिए भारतीय संस्कृति के मूल्यों एवं नैतिकता को महत्व प्रदान करना होगा। महासचिव अभय सिंह भटनागर ने कहा कि जयप्रकाश नारायण के अनुसार समाजवाद एक जीवन पद्धति है जिसके मूल्यों को संस्थागत रूप से ग्रहण नहीं किया जा सकता।पूर्व प्रधानाचार्य राजेन्द्र सक्सेना ने कहा कि निःसंदेह समाजवाद किसी भी प्रतिस्पर्धी सामाजिक तत्वज्ञान की अपेक्षा मानव जाति को उन लक्ष्यों के निकट ले जाने का आश्वासन देता है, किन्तु जब तक समाजवाद सर्वोदय में रूपांतरित नहीं हो जाता, वे लक्ष्य इसकी पहुंच से बाहर रहेंगे।

गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि पूर्व प्रधानाचार्य राजेन्द्र कुमार सक्सेना रहे। संचालन सुरेन्द्र बीनू सिन्हा और आभार ज्ञापन महासचिव अभय सिंह भटनागर ने किया।

 
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