बरेली। “महिला और पुरुष को प्रकृति ने एक सा बनाया है। वह भी पुरुषों के समान ही एक व्यक्तित्व है। दुर्भाग्य है कि उसे भेदभाव की वजह से हर जगह और हर बार यह बताना पड़ता है कि वह पुरुषों के समान है। उसके पैदा होने के साथ ही इस पहले सवाल के साथ भेदभाव शुरू हो जाता है, जब डाक्टर से पूछा जाता है कि क्या हुआ? यह आगे बढ़ता हुआ बराबरी के हक तक जाता है। महिलाओं का सारा जीवन पुरुषों से बराबरी हासिल करने में संघर्ष में बीतता है। सारी लड़ाई सिर्फ बराबरी के हक की है। इसी सोच को बदलने की जरूरत है।”
बरेली कॉलेज की चीफ प्रॉक्टर डॉ. वंदना शर्मा ने यह बात कही। वह एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज में महिला सशक्तिकरण के लिए मिशन शक्ति अभियान के दूसरे दिन मंगलवार को जागरूकता कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं। उन्होंने महिलाओं का आह्वान किया कि वे समानता के अधिकार के लिए आवाज उठाएं और अपनी शक्ति को पहचानें।
पुरुषों के मुकाबले स्त्री सौ गुना ज्यादा ताकतवर
डॉ. वंदना ने कहा कि हमारे समाज में यत्र नार्यस्तु पूज्यंते का आह्वान किया जाता है तो दूसरी तरह इसी समाज का एक वर्ग उसे पैरों की जूती समझता है। दोनों विरोधी बाते हैं। यह दोहरा मापदंड पुरुषों ने महिलाओं के व्यक्तित्व और उनकी असीमित क्षमताओं को देखते हुए गढ़ा है। महिलाओं के कमजोर होने की बातें भी पुरुषों ने अपना अहम बनाए रखने के लिए कही हैं। प्रकृति ने औरत को कमजोर और पुरुषों को ताकतवर बनाया कहना भी सरासर गलत है, झूठ है। पुरुषों के मुकाबले स्त्री सौ गुना ज्यादा ताकतवर है। इसीलिए वह उसकी संतति को जन्म देती है, पालती- पोसती और बड़ा करती है। अगर स्त्री ताकतवर न होती तो ऐसा होना असंभव था। प्रकृति ने स्त्री और पुरुष दोनों को समान बनाया है, समान ताकतें दी हैं।
उन्होंने कहा कि महिला भी पुरुष के समान ही एक व्यक्तित्व है। उसकी भी एक पहचान है। नाम है। सारी लड़ाई बराबरी की है। नाम की है। इसे इंग्लिश के शब्द एन.ए.एम.ई. से समझना जरूरी है। एन का तात्पर्य न्यूट्रीशन, ए का एफेक्शन, एम का मेडिकल हेल्थ और ई का तात्पर्य एजूकेशन है। तमाम परिवारों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों को न्यूट्रीशन में बराबरी का हक नहीं मिलता। परिवार के लोग एफेक्शन, मेडिकल हेल्थ और एजूकेशन में भी लड़कियों से दोहरा मानदंड रखते हैं। यहीं से भेदभाव की लड़ाई शुरू होती है। जो घर से निकल कर समाज तक जाती है।
बेटी “टेंशन” नहीं “टेन सन” के बराबर
डॉ वंदना ने कहा कि बेटी “टेंशन” नहीं “टेन सन” यानी दस बेटों के बराबर होती है। अगर इसे मान लिया जाए, सारा भेदभाव खत्म हो जाएगा। लेकिन, पुरुष की मानसिकता यह सोचने नहीं देती। फिर भी हमें और आप को गर्व होना चाहिए कि भाग्य हमारे और आपके साथ है। हमें माता पिता ने जन्म लेने दिया, यह भाग्य के हमारे साथ होने की पहली निशानी है। हमें पढ़ाने का फैसला किया और भविष्य बनाने के लिए अच्छी संस्था में पढ़ने का मौका दिया, यह भाग्य के हमारे साथ होने का ही परिणाम है। इसके बाद भी पुरुष हमें बराबरी का हक और आजादी देने की बात करें तो यह हमारे साथ सरासर अन्याय है। बराबरी का हक और आजादी तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यह हमें मिलनी ही चाहिए। पुरुष इसे देने वाले कौन होते हैं। सिर्फ इसलिए कि महिलाएं और बेटियां घर से बाहर सुरक्षित नहीं, उनके साथ दुर्व्यवहार हो रहा है। अगर ऐसा है तो इसका जिम्मेदार कौन है। यह कर कौन रहा है। जाहिर है, वे असुरक्षित हैं पुरुषों की वजह से ही। ऐसे में उन्हें रोकने की जरूरत है न कि महिलाओं को।
सेल्फ डिफेंस के लिए मार्शल आर्ट सीखना जरूरी
डॉ. वंदना ने कहा कि महिला अपराधों के 80 प्रतशत मामलों में आरोपित कोई बाहर का नहीं बल्कि नजदीकी रिश्तेदार होते हैं। ऐसे में महिलाओं को सावधान होने की जरूरत है। खुद को मजबूत करने और ऐसे अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। यह आवाज अपने लिए तो उठानी ही चाहिए अन्याय और अत्याचार से पीड़ित दूसरी महिलाओं के लिए भी हमें साथ आना चाहिए। हां इसके साथ ही महिलाओं को सेल्फ डिफेंस के लिए कोई भी मार्शल आर्ट सीखना जरूरी है। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा जो प्रतिकार के लिए जरूरी है। शोषण करने वाले पुरुषों को बताना जरूरी है कि लड़कियां कोमल नहीं होतीं। हिंसा और शोषण पर मौन रहने के बजाय उसके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। संविधान भी आत्मरक्षा का अधिकार देता है। ऐसे में किसी भी अनहोनी के समय साहस और धैर्य रखें। प्रतिरक्षा करें और बचाव हर वह उपाय करें जो संभव हो। ध्यान रखें कि जागरूकता, सहनशक्ति और आत्मविश्वास से हर परिस्थिति का मुकाबला किया और उसे जीता जा सकता है।
डॉ. वंदना शर्मा ने एनसीसी कैडेट और एसआरएमएस सीईटी में बीटेक की छात्रा मनुश्री की मदद से उपस्थित छात्राओं को सेल्फ डिफेंस के गुर भी दिए। उन्हें बताया कि किस तरह साधारण से पेन की मदद से भी अपना बचाव किया जा सकता है।
इस अवसर पर एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रचार्य डा.एसबी गुप्ता, मिशन शक्ति कार्यक्रम की चीफ कोऑर्डिनेटर डा.बिंदू गर्ग, डॉ.सुजाता सिंह, एसआरएमएस इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल के प्राचार्य डॉ. प्रबल जोशी तता एमबीबीएस, नर्सिंग और पैरामेडिकल छात्राएं की मौजूद रहीं। कार्यक्रम का संचालन एमबीबीएस की छात्रा तानिया सक्सेना ने किया।