नई दिल्ली। अनमोल पानी का मोल न समझ उसे बर्बाद करने वाले अब सावधान हो जाएं।कोई भी व्यक्ति और सरकारी संस्था यदि भूजल स्रोत से हासिल होने वाले पीने योग्य पानी (पोटेबल वाटर, Potable water) की बर्बादी करता है या उसे बेवजह इस्तेमाल करता है तो यह एक दंडात्मक अपराध माना जाएगा। केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) के नए निर्देश के अनुसार, पीने योग्य पानी का दुरुपयोग भारत में 1 लाख रुपये तक के जुर्माना और 5 साल तक की जेल की सजा के साथ दंडनीय अपराध होगा।
गौरतलब है कि देश में अब तक पानी की बर्बादी करने पर दंड का कोई प्रावधान नहीं था। घरों की टंकियों के अलावा कई बार टैंकों से जगह-जगह पानी पहुंचाने वाली नागरिक संस्थाएं भी पानी की बर्बादी करती है। पानी की बर्बादी का एक बड़ा कारण पुरानी और जर्जर पेयजल पाइपलाइन भी हैं।
सीजीडब्ल्यूए ने पानी की बर्बादी और बेवजह इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए 8 अक्तूबर 2020 को पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 की धारा पांच की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्राधिकरणों और देश के सभी लोगों को संबोधित करते हुए अपने आदेश में कहा है कि इस आदेश के जारी होने की तारीख से संबंधित नागरिक निकाय, जो कि राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में पानी आपूर्ति नेटवर्क को संभालते हैं और जिन्हें जल बोर्ड, जल निगम, वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट, नगर निगम, नगर पालिका, विकास प्राधिकरण, पंचायत या किसी भी अन्य नाम से पुकारा जाता है, वे यह सुनिश्चित करेंगे कि भूजल से हासिल होने वाले पीने योग्य पानी की बर्बादी और उसका बेजा इस्तेमाल नहीं होगा। इस आदेश का पालन करने के लिए ये सभी एक तंत्र विकसित करेंगे और आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक उपाय किए जाएंगे। देश में कोई भी व्यक्ति भू-जल स्रोत से हासिल पीने योग्य पानी का बेवजह इस्तेमाल या बर्बादी नहीं कर सकता ह।
एनजीटी में दाखिल की गई थी याचिका
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राजेंद्र त्यागी और गैर सरकारी संस्था फ्रैंड्स की ओर से बीते वर्ष 24 जुलाई 2019 को पानी की बर्बादी पर रोक लाने की मांग वाली याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी। इसी मामले में करीब एक साल से ज्यादा समय के बाद 15 अक्तूबर 2020 के एनजीटी के आदेश का अनुपालन करते हुए सीजीडब्ल्यूए ने आदेश जारी किया है।