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भोपाल। हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के भू-विज्ञानी प्रोफेसर पीके कथल ने मंडला जिले में डायनासोर के 6.5 करोड़ साल पुराने अंडे का जीवाष्म मिलने का दावा किया है। दरअसल, कुछ बच्चे ऐसे ही एक अंडे के जीवाष्म से खेल रहे थे, जांच करने पर इस स्थान पर कोरोड़ों साल पहले विशालकाय प्राणियों के रहने का सबूत सामने आ गया। खास बात यह कि डायनासोर की जिस प्रजाति के अंडे का जीवाश्म होने का दावा किया गया है, वह इससे पहले कभी भारत में नहीं मिला। जीवाश्म का पता सबसे पहले सरकारी स्कूल में काम करने वाले एक शिक्षक को चला जब वह सुबह की सैर पर निकले थे।

मध्य प्रदेश के मंडला जिले में कार्यरत शिक्षक प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि वह मोहनटोला इलाके में मॉर्निंग वॉक पर लिए निकले थे। इसी दौरान उन्होंने कुछ बच्चों को गेंद की तरह दिखने वाले एक पत्थर से खेलते देखा। उन्होंने बच्चों से वह पत्थर मांगा तो उन्होंने देने से इन्कार कर दिया लेकिन कहा कि वे उन्हें इसी तरह का दूसरा पत्थर दे सकते हैं। बच्चे उनको उस जगह पर गए जहां एक तालाब की खुदाई हो रही थी। वहां उन्हें उसी तरह की 7 गेंद मिलीं। प्रशांत ने बताया कि पहली बार देखकर ही उन्हें अंदाजा हो गया था कि ये जीवाश्म हैं।

भू-विज्ञानी प्रोफेसर पी के कथल ने इन गेंदों का अध्ययन कर इनके जीवाश्म होने का दावा किया है। कथल ने कहा है कि जीवाश्म करीब 6.5 करोड़ साल पुराने और डायनासोर की ऐसी प्रजाति के हैं जिसका कोई भी जीवाष्म अब तक भारत में नहीं मिला था।

जीवाश्म की तलाश करने वाले शिक्षक प्रशांत श्रीवास्तव के लिए यह सपने सच होने जैसा है। उन्होंने बताया कि वह छात्रों को विज्ञान पढ़ाते हैं और बचपन से ही जीवाश्मों में उनकी रुचि है। गेंद मिलते ही उन्होंने उसे संग्रहालय रखवा कर मंडला के जिला कलेक्टर और शिक्षाविदों से संपर्क किया। इसके बाद प्रोफेसर कथल 30 अक्टूबर को वहां पहुंचे और रिसर्च के आधार पर उसके डायनासोर के अंडे का जीवाश्म होने की पुष्टि की।

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