नई दिल्ली। राम सेतु से जुड़े सवालों का जवाब तलाशने के लिए समुद्र के नीचे इसी साल एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का मकसद यह पता लगाना है कि भारत और श्रीलंका के बीच पत्थरों की यह श्रृंखला कब और कैसे बनाई गई। इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने कहा कि यह रामायण काल के बारे में पता करने में मदद कर सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई, ASI) के तहत पुरातत्व पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ने पिछले महीने सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा, (एनआईओ) के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
जानकारी के अनुसार, इस रिसर्च के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) की ओर से सिंधु संकल्प या सिंधु साधना नाम के जहाजों का इस्तेमाल किया जाना प्रस्तावित है। इन समुद्री जहाजों की खास बात यह है कि ये पानी की सतह के 35-40 मीटर नीचे से आसानी से नमूने एकत्र कर सकते हैं। इस शोध में यह पता लगाने का भी प्रयास किया जाएगा कि क्या राम सेतु के आसपास कोई बस्ती भी थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, एनआईओ के निदेशक, प्रोफेसर सुनील कुमार सिंह ने बताया कि प्रस्तावित अध्ययन भूवैज्ञानिक काल और अन्य सहायक पर्यावरणीय आंकड़ों के लिए पुरातात्विक पुरातन, रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनिसे (टीएल) पर आधारित होगा। मूंगा वाले कैल्शियम कार्बोनेट की मदद से संरचना के काल का पता लगाया जाएगा।
रेडियोमैट्रिक डेटिंग किसी वस्तु की आयु का पता लगाने के लिए रेडियोएक्टिव अशुद्धियों की तलाश करता है। जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो TL डेटिंग प्रकाश का विश्लेषण करती है।
यह प्रोजेक्ट धार्मिक और राजनीतिक महत्व रखता है। हिंदू धर्म की किताब रामायण में कहा गया है कि वानर सेना ने भगवान राम को लंका पहुंचाने और सीता को बचाने में मदद करने के लिए समुद्र पर एक पुल बनाया था। चूना पत्थर के शैलों की 48 किलोमीटर की श्रृंखला को रामायण के साथ जोड़ दिया गया है। दावा किया जाता है कि यह मानव निर्मित है। वर्ष 2007 में, एएसआई ने कहा था कि उसे इसका कोई सबूत नहीं मिला है। हालंकि बाद में, उसने सुप्रीम कोर्ट से यह हलफनामा वापस ले लिया।
रामायण का समय पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों के बीच एक बहस का विषय है। राम सेतु और उसके आसपास के क्षेत्र की प्रकृति और गठन को समझने के लिए पानी के नीचे पुरातात्विक अध्ययन करने का प्रस्ताव है।