नई दिल्ली। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी, NCERT) की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाए जा रहे भारत के इतिहास की विश्वसनीयता पर एनसीईआरटी के एक जवाब ने ही सवालिया निशान लगा दिए हैं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत इतिहास के एक चैप्टर के प्रसंग को लेकर मांगी गई सूचनाओं के जवाब में कहा है कि परिषद के पास इस बारे में सूचना उपलब्ध नहीं है।

दरअसल, शिवांक वर्मा ने इतिहास के एक पाठ में मुगल शासकों शाहजहां और औरंगजेब द्वारा युद्ध के दौरान ध्वस्त हुए मंदिरों की मरम्मत के लिए अनुदान दिए जाने के पैराग्राफ को लेकर साक्ष्य की मांग एनसीईआरटी से आरटीआई के तहत की थी। साथ ही, आरटीआई के माध्यम से यह भी जानना चाहा था कि इन शासकों द्वारा किन-किन मंदिरों की मरम्मत के लिए अनुदान दिया गया था। इन दोनो ही प्रश्नों के जवाब ने एनसीईआरटी ने सूचना उपलब्ध न होने की जानकारी दी है।

नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी, रायपुर के छात्र शिवांक ने कहा कि 18 नवंबर को NCERT ने जवाब दिया था कि पाठ्यपुस्तक में किए गए इन दावों का उसकी फाइल में कोई रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने कहा, “वर्ष 2018 में 12वीं क्लास में पढ़ते समय ही इन दावों के लेकर मन में सवाल उठा था और इसलिए मैंने आरटीआई दायर करके NCERT से इस बारे में पूछा था।“

कक्षा 12 की इतिहास की पुस्तक “थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री पार्ट II” के पेज संख्या 234 पर मुगल शासकों शाहजहां एवं औरंगजेब के बारे में दिए गए एक पैराग्राफ को लेकर शिवांक वर्मा द्वारा 3 सितंबर 2020 को मांगी गई सूचना का जवाब एनसीईआरटी के सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग की विभागध्यक्ष एवं जनसूचना अधिकारी प्रो. गौरी श्रीवास्तव की तरफ से दिया गया है।

इस जवाब के बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्कॉलर रहीं और शिक्षाविद डॉ. इंदू विश्वनाथन ने 13 जनवरी, 2021 को एनसीईआरटी के पत्रर को ट्वीट करते हुए कहा, “यह अविश्वसनीय रूप से घातक साक्ष्य है।” एनसीईआरटी की पुस्तकों को विद्यालयी शिक्षा के लिए बेंचमार्क माना जाता है। सिविल सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी इन पुस्तकों से तैयारी करने की सलाह एक्पर्ट्स द्वारा दी जाती रही है। ऐसे में डॉ. इंदू विश्वनाथन के ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है।

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी संजय दीक्षित ने ट्वीट किया, “एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के इतिहास विभाग द्वारा यूपीए 1 के कार्यकाल (मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल) के दौरान वामपंथी प्रचार के बीच लिखा गया था। इन पुस्तकों का ‘बोनफायर’ काफी समय से लंबित है।”

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीन शिमला स्थित शोध संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी (आईआईएएस) के निदेशक मकरंद आर. परांजपे ने ट्वीट करते हुए प्रश्न उठाया, “एनसीईआरटी की फाइलों में सूचना उपलब्ध नहीं है, यानी इस तथ्य का अस्तित्व ही नहीं है? मूल प्रश्न यह है कि हमारी इतिहास की किताबों में लेखकों ने पहले तो ऐसे संदेहास्पद दावों को शामिल ही क्यों किया और फिर उन्हें ऐसा करने के निर्देश किसने दिए?”

 पाठ्यपुस्तकों में सुधारों के मुद्दे पर शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति की बैठख में भी बुधवार को भारतीय इतिहास की पाठ्य पुस्तकों  में मुगलकाल का मुद्दा छाया रहा। स्थायी समिति की बैठक के एजेंडे में पाठ्यक्रम की किताबों से गैर-ऐतिहासिक तथ्यों की समीक्षा करना था। बुधवार को पैनल ने एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर जगमोहन सिंह राजपूत और शंकर शरण का पक्ष सुना।

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