बरेली। पर्यावरण अभियंता की ओर से रिपोर्ट दर्ज होने पर मंगलवार को मेयर डॉ.उमेश गौतम मीडिया से मुखातिब हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट कान्हा उपवन में लगातार गोवंश के मरने और उनके शव बाकरगंज खड्ड में दबा देने के आरोप लगाए। यह भी बताया कि मरने वाले गोवंश का पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार नहीं कराया जा रहा है।
मेयर ने बताया कि बेसहारा गोवंश को संरक्षण देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर तहसील में पशु आश्रय गृह बनाए हैं। नंदोसी में 60 बीघा भूमि पर 10 करोड़ की लागत से बने कान्हा उपवन व पशु आश्रय गृह में फिलहाल ढाई सौ गोवंश रखने की व्यवस्था है, लेकिन वहां साढ़े चार सौ से अधिक पशु रखे गए हैं। जगह कम होने व खाना पर्याप्त नहीं मिलने के कारण बीमारी फैलने की आशंका है।
उन्होंने बताया कि फरवरी से लेकर मई तक करीब 125 गोवंश की मृत्यु हो चुकी है। नगर निगम ने इन पशुओं का पोस्टमार्टम नहीं कराया। उनका अंतिम संस्कार भी नहीं करवाया, जबकि सराय तलफी में गड्ढा खोदकर दफनाने व ऊपर से नमक डालने को कहा गया था। अधिकारी उनकी देखभाल के बजाए भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उन्होंने ऐसे अधिकारियों पर उच्च स्तरीय जांच के बाद कार्रवाई किए जाने को कहा। उन्होंने मरने वाली गायों के प्रमाण पत्र भी सार्वजनिक किए।
कान्हा उपवन में क्षमता से ज्यादा पशु : नगर आयुक्त
नगर आयुक्त सैमुअल पॉल एन ने कहा कि कान्हा उपवन का निरीक्षण किया था। वहां जितनी व्यवस्था हैं, उससे अधिक पशु रखे गए हैं। उनके लिए खाने-पीने और बैठने की व्यवस्था हो रही है। उपचार के लिए डॉक्टर हैं, जो उनकी देखभाल कर रही हैं। फिलहाल कोई शिकायत नहीं आई है। अगर आएगी तो कठोर कार्रवाई की जाएगी।
नगर निगम की लड़ाई में उछला भ्रष्टाचार
मेयर और नगर आयुक्त में पट नहीं रही है, यह ज्यादातर को पता है। वजह को लेकर कयास लगते रहे हैं लेकिन अब आकर यह मामला भ्रष्टाचार से जुड़ गया है। महापौर मंगलवार को जब वह नगर स्वास्थ्य अधिकारी पर बिगड़ रहे थे तो चिल्लाते हुए कह रहे थे कि कितना खाओगे। नगर आयुक्त से भी कहा था, अधिकारियों को भ्रष्टाचार का रास्ता न दें। जवाब में नगर आयुक्त ने भी कह दिया है, भ्रष्टाचार है तो साबित करें। महज कह देना उचित नहीं है।
वैसे नगर निगम में भ्रष्टाचार का आरोप नया नहीं है। भ्रष्टाचार की गूंज बोर्ड व कार्यकारिणी की बैठकों से लेकर अफसरों तक पहुंचने वाली शिकायतों में भी सुनाई देती रही है। जब कभी कार्यकारिणी का चुनाव हुआ, तब भी वोट बिकने के आरोप उछले। निर्माण कार्यो में कमीशन भी बड़ा मुद्दा रहा है। पोर्टेबल शाप मामले में तो पार्षद इत्यादि पर मुकदमा भी हो चुका है। अब आकर मेयर भी यह कह बैठे कि अफसर भ्रष्टाचार फैला रहे हैं। उनके इस आरोप पर रार शुरू हो गई है। इसमें पूर्व मेयर और सपा पार्षद दल के नेता भी कूद आए हैं। नगर आयुक्त ने जवाब में आरोप साबित करने की बात कही है।
यह है विवाद की असली वजह
विवाद की वजह सड़क पर घूमती गाय पकड़ने के बाद लगा शुल्क ही था। मेयर ने सिफारिश करते हुए वह शुल्क पंद्रह सौ रुपये कर दिया था। उस पर प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी ने गौर नहीं किया, तो मेयर उनके कार्यालय में पहुंच गए थे।
कितना लग सकता है जुर्माना
नगर निगम अधिनियम के तहत पांच हजार रुपये बड़े पशुओं और छोटे पशुओं पर तीन हजार रुपये जुर्माना लगाया जा सकता है।
नगर आयुक्त बोले- दूसरी बार सख्त कार्रवाई का प्रावधान
किससे कितना शमन शुल्क वसूला जाना चाहिए इसका अधिकार नगर आयुक्त के पास है। नगर निगम अधिनियम में यही लिखा है। रही बात भ्रष्टाचार की तो आरोप लगाने वाले यह साबित भी तो करें। शासन ने सड़कों पर घूमते जानवरों को पकड़कर गोशाला में रखने को कहा है। कुछ दिन पहले खुद भी सड़क पर खड़े होकर गोवंशीय पशु पकड़वाए थे। पकड़े पशु छोड़ने पर पहले जुर्माना दूसरी बार में सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। इसके लिए प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी को नामित किया है।
मैं जनता का प्रतिनिधि : मेयर
मेयर डॉ. उमेश गौतम ने कहा कि हमें जनता ने चुना है, मैं उनका प्रतिनिधि हूं। हमने गाय पकड़ने पर एक से दो हजार तक जुर्माना लगाने को रखा था। दोबारा पकड़ने पर पांच हजार रुपये जुर्माना वसूलने को कहा था, लेकिन पहली बार में ही पांच हजार जुर्माना लिया जा रहा है। गांव के लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। पशुओं को शिफ्ट करने में भी समय लगता है।
आरोप लागाना आसन, साबित करना मुश्किल
पूर्व मेयर डॉ. आइएस तोमर ने कहा कि किसी पर आरोप लगाया आसान है लेकिन उसे सिद्ध भी किया जाना चाहिए। जो भी आरोप लगा रहे हैं, उन्हें उसका प्रमाण देना चाहिए। नगर आयुक्त के कक्ष में जाकर आरोप लगाने का तरीका गलत है। अधिकारी को बुलाकर बात करनी चाहिए।
चुनाव से पहले हमारे मुद्दे को भ्रष्टाचार नहीं माना
सपा पार्षद दल नेता राजेश अग्रवाल ने कहा कि चुनाव से पहले हम यूनीपोल, पोर्टेबल शॉप, सफाई का बजट नाले-सड़क निर्माण में लगाने को लेकर चिल्लाते रहे, तब उसे भ्रष्टाचार नहीं माना गया। दो महीने में भ्रष्टाचार किन मुद्दों पर हुआ, यह पता लगना जरूरी है।
साभार जागरण