नई दिल्ली। यह खबर लापरवाह बैंक कर्मचारियों के लिए सबक है और खुद को ग्रहकों का मालिक समझने वाले बैंक मैनेजरों के लिए सबक। राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह कहा है कि बैंक अगर किसी लापरवाही में चेक खो देता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह ग्रहाक को उसकी राशि का भुगतान करे। गौरतलब है कि चेक बाउंस हो तो भी बैंक की जिम्मेदारी कि वह इसे ग्राहक को लौटाए। बैंक को चेक डिसऑनर होने पर वह चेक और मेमो ग्राहक को देना होता है।

आयोग ने कहा है कि अगर ग्राहक कोई चेक बैंक में जमा करता है, (फिर चाहे वह बाउंस ही क्यों न गया हो) तो यह बैंक का दायित्व है कि उसके खो जाने पर पीड़ित को राहत दे। आयोग ने इस मामले में बैंक ऑफ बड़ौदा से गुजरात के पीड़ित उपभोक्ता को 3.6 लाख रुपये अदा करने को कहा है। आयोग ने पाया कि  बैंक ने न केवल चेक खो दिया बल्कि शिकायतकर्ता चित्रोदय बाबूजी दीवानजी को चेक रिटर्न का मेमो भी नहीं दिया जबकि ग्राहक लगातार उससे गुहार लगाता रहा। इससे दीवानजी को 3.6 लाख रुपये का नुकसान हुआ। दीवानजी का कहना है कि बाउंस चेक न मिलने के कारण वह चेक देने वाले पर बकाये के लिए कोई दबाव नहीं डाल सका।

राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग ने इस मामले में गुजरात के राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को सही ठहराया और बैंक ऑफ बड़ौदा की पुनरीक्षा याचिका को ठुकरा दिया। राज्य आयोग ने 20 जनवरी 2016 को दीवानजी की अपील स्वीकार करते हुए बैंक को आदेश दिया था कि वह पीड़ित को तीन लाख 60 हजार रुपये का भुगतान करे, हालांकि इस मामले में जिला फोरम ने पीड़ित को बड़ी राहत नहीं दी थी। जिला फोरम ने 2013 में बैंक को महज 15 हजार रुपये ग्राहक को देने को कहा था। 

इस मामले में शिकायतकर्ता दीवानजी ने गुजरात के विसनगर स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा में तीन लाख 60 हजार रुपये का चेक जमा किया था। यह चेक उसे किसी अन्य कारोबारी ने बकाया चुकाने के लिए दिया था। बैंक का कहना था कि चेक बाउंस हो गया लेकिन उसने डिसऑनर चेक या उसका मेमो तक ग्राहक को नहीं दिया। इसके बाद पीड़ित ने बैंक को नोटिस जारी कराया।

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