महाशिवरात्रि को खास बना रहे शिव एवं सिद्धि योग

य शिव शंकर नमामि शंकर जय शंकर शंकर शंभू।

भूतेश्वर कामेश्वर काशी विश्वनाथ मम शिव शंकर।

महाशिवरात्रि इस वर्ष गुरुवार,11 मार्च को संपूर्ण विश्व में मनाई जाएगी यहां उल्लेखनीय है कि बुधवार, 10 मार्च को दोपहर 2:40 पर त्रयोदशी प्रारंभ होगी, साथ ही रात्रि 9:02 बजे धनिष्ठा नक्षत्र लग जाएगा। यहां विशेष बात यह होगी कि बुधवार को प्रातः 10:36 बजे शिवयोग प्रारंभ हो रहा है जो कि इस महाशिवरात्रि पर विशेष सिद्धि कारक योग बना रहा है। इसके साथ-साथ चंद्रमा मकर राशि में ही होंगे। साथ ही 11 मार्च को निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी होने के कारण चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन भी साथ-साथ होगा। शिव योग एवं सिद्धि इस महाशिवरात्रि को खास बना रहे हैं।

ज्योतिष आचार्यों के अनुसार महाशिवरात्रि के व्रत से भगवान भोलेनाथ की कृपा सदैव बनी रहती है और अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। शिवयोग में होने के कारण इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व धन, सौभाग्य और समृद्धि देने वाला है। वेद वर्णित महाशिवरात्रि के दिन चार पहर की पूजा एवं रुद्राभिषेक से सभी नकारात्मक प्रभाव दूर होकर जीवन में सकारात्मक स्थितियां उत्पन्न होती हैं।

यहां उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है यदि महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष को धारण करके पूजा की जाए तो भोलेनाथ की कृपा से भक्त की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और साधारण पूजन से भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण भगवान शिव के हर रूप को इस दिन पूजा जाता है। ज्योतिष आचार्यों के अनुसार भगवान भोलेनाथ की पूजा सभी देवताओं की अपेक्षा सबसे साधारण और आसान होती है। उनको खुश करने के लिए हमें कोई भी चीज खरीदने की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति द्वारा मुफ्त में मिलने वाले बेलपत्र, धतूरा और एक लोटा जल से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्ति के लिए यही तीन चीजें आवश्यक होती हैं।

महा शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा गया है क्योंकि समुद्र मंथन के समय भोलेनाथ ने सृष्टि को तबाह होने से बचाने के लिए विष को धारण कर अपने कंठ के नीचे नहीं जाने दिया। इसके फलस्वरूप वह अचेत हो गए। इस पर देवताओं ने उस विष की गर्मी को दूर करने के लिए भगवान शिव के सिर पर धतूरा और भांग रखकर लगातार जल अभिषेक किया। इससे  भगवान शिव पर विष का जो असर हो रहा था, वह समाप्त हो गया। उसी परंपरा के अनुरूप भोलेनाथ की कृपा प्राप्ति के लिए भांग, धतूरा, बेलपत्र और जल चढ़ाया जाने लगा।

बेल पत्र के तीन रूपों का शास्त्रों में वर्णन आता है। यह रज सत्त्व और तमोगुण के साथ-साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक स्वयंभू माना जाता है। यहां उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है यदि गाय के दूध से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक हो तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों के अनुसार जब विष का असर भगवान शिव की जटाओं पर बैठी माता गंगा पर पड़ने लगा तो देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का आग्रह किया। दूध ग्रहण करने से उनके शरीर से विष का प्रभाव कम होने लगा और उनको प्रसन्नता प्राप्त हुई।

महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखें। ॐ नमः शिवाय।

 -राजेश कुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य