नई दिल्ली। केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में जान फूंकने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मार्च को भारत बंद का ऐलान किया है। इस दौरान दिनभर सभी दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद कराने के साथ-साथ रेल और सड़क परिवहन को भी रोका जाएगा। आंदोलन का दायरा बढ़ाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा 17 मार्च को विभिन्न ट्रेड यूनियनों के साथ ही बस और ट्रक ऑपरेटर यूनियनों के साथ बैठक कर सहयोग की अपील करेगा।
किसान मोर्चा के नेता बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा कि आंदोलन लंबा चलना है। दिल्ली और संसद कूच का भी कार्यक्रम होगा लेकिन फिलहाल इसको लेकर कोई कार्यक्रम तय नहीं हुआ है। 15 मार्च को विभिन्न ट्रेड यूनियनों की ओर से कारपोरेटाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के विरोध में रेलवे स्टेशनों के बाहर होने वाले प्रदर्शन में मोर्चा भी शामिल होगा। 19 मार्च को मंडी बचाओ-खेती बचाओ कार्यक्रम किया जाएगा। विभिन्न मंडियों में प्रदर्शन कर वहां के एसडीएम, डीसी/डीए को ज्ञापन सौंपा जाएगा। इसमें मुख्य मुद्दा जमाबंदी और फर्द को लेकर लागू की गई अनिवार्यता है जिसका विरोध किया जाएगा। 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीदी दिवस मनाया जाएगा। 28 मार्च को होली के दिन तीनों कृषि कानूनों की धरनास्थल पर होली जलाई जाएगी।
गौरतलब है कि दिल्ली के सिंघू बॉर्डर से लेकर टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर भी किसानों का जमावड़ा अब भी है।
26 नवंबर 2020 से धरना दे रहे हैं किसान
पिछले साल 26 नवंबर को पंजाब और हरियाणा से निकले किसानों के जत्थे दिल्ली की तरफ कूच कर गए थे। पंजाब-हरियाणा की सीमा पर जमकर बवाल हुआ। सिंधु बॉर्डर पर टकराव के बावजूद किसान आगे बढ़ते चले आए। रात में किसान तमाम मुश्किलों और हरियाणा पुलिस की चुनौतियों का सामना करते हुए सिंघु बॉर्डर पहुंचे जहां उन्हें दिल्ली पुलिस ने रोक दिया। दिल्ली चलो का अभियान दिल्ली की सीमा के भीतर नहीं आ पाया। तय हुआ कि दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी जाए जिसे किसानों ने ठुकरा दिया।
सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत
बीते साल 1 दिसंबर से केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ। पहले दौर की बैठक के बाद एक के बाद एक 11 दौर की बातचीत सरकार और तकरीबन 40 किसान संगठनों के नेताओं के बीच हुई। अलग-अलग प्रस्तावों के बावजूद, किसान तीनों कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग पर अड़े रहे। सरकार ने कानून को लगभग डेढ़ साल तक स्थगित करने तक का प्रस्ताव भी दिया, जिसे किसानों ने सर्वसम्मति से ठुकरा दिया।