प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को शुक्रवार को बड़ी राहत दी। अदालत ने आरक्षण को लेकर दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने गोरखपुर जिले में अनुसूचित जनजाति का एक भी व्यक्ति न होने के बावजूद पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान की सीट आरक्षित करने के विरुद्ध दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर शुक्रवार को अवकाश के बावजूद स्पेशल कोर्ट बैठी और याचिका पर सुनवाई हुई।
राज्य सरकार की तरफ से हाईकोर्ट के समक्ष आपत्ति की गई कि राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है और संविधान के अनुच्छेद 243ओ के अनुसार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद अदालत को चुनाव में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में याचिका पोषणीय न होने के कारण खारिज की जाए। अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने गोरखपुर जिले के परमात्मा नायक व दो अन्य की याचिका पर दिया है। इससे पहले अदालत ने याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एचआर मिश्र एवं केएम मिश्र तथा राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता संजय कुमार सिंह एवं स्थायी अधिवक्ता देवेश मिश्र की दलीलों को सुना। मुख्य स्थायी अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की जिसे स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया।
याचिका में कहा गया था कि गोरखपुर जिले में अनुसूचित जनजाति का एक भी व्यक्ति नहीं है।इसके बावजूद सरकार ने 26 मार्च 2021 को जारी आरक्षण सूची में चावरियां बुजुर्ग, चावरियां खुर्द एवं महावर कोल ग्रामसभा सीटों को आरक्षित घोषित कर दिया है जो संविधान के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है। मांग की गई कि रिकार्ड तलब कर आरक्षण रद्द किया जाए और याचियों को चुनाव लड़ने की छूट दी जाए।