विश्व बाघ दिवस,2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी, बाघों,World Tiger Day,India's worthwhile effort to save tigers,MUNNA TIGER

नई दिल्ली। विश्व बाघ दिवस : विश्व में प्रतिवर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है।वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया। इस सम्मेलन में 13 देशों ने भाग लिया था और उन्होंने 2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा था। बाघ जंगल के स्वास्थ्य एवं शाकाहारी वन्य प्राणियों की उपलब्धता दर्शाते हैं। जहां जंगल अच्छा होगा, वहां बाघ होगा।

भारत के सार्थक हो रहें हैं प्रयास

फिलहाल 2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी का लक्ष्य बाघों को बचाने के लिए भारत के प्रयास बाकी दुनिया के मुकावले रंग ला रहे हैं।बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब सिर्फ तीन साल ही बाकी है। 2022 तक इस लक्ष्य को पूरा होना है। ऐसे में भारत को छोड़ दें, तो दुनिया के बाघ रेंज वाले दूसरे देशों में इनके संरक्षण की वैसी ललक नहीं देखने को मिल रही है। इसका अंदाजा इन देशों में बाघों की घटती संख्या से लगाया जा सकता है। जो 2010 के मुकाबले कम हुई है। जबकि भारत में इसकी संख्या में 2010 के बाद से 30 फीसद से ज्यादा की बढोत्तरी हुई है।

यह इसलिए भी अहम है, क्योंकि बाघों की संख्या को दोगुना करने की इस मुहिम में भारत की तरह दूसरे देशों को भी आगे बढ़ना होगा, तभी लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में 2010 में जहां बाघों की संख्या कुल 1411 रह गई थी, वह अब बढ़कर 2014 में करीब 2226 हो गई है। हालांकि वैश्विक स्तर पर इनके बढ़ने की रफ्तार अभी भी काफी धीमी है। 2010 में वैश्विक स्तर पर बाघों की कुल संख्या करीब 32 सौ थी, जो 2014 में बढ़कर करीब 3890 हो गई है। इनमें बढ़ोत्तरी सिर्फ भारत में ही हुई। भारत को इससे अलग कर दें, तो दूसरे सभी देशों में यह संख्या 2010 में 18 सौ के करीब थी, जो अब 1780 ही रह गई है।

वैसे भी 2010 में जब बाघ रेंज के 13 देशों ने एक साथ मिलकर ग्लोबल टाइगर रिकबरी प्रोग्राम ( जीटीआरपी) को लांच किया था, उस समय भी भारत से सभी को उम्मीदें थी। पिछले सालों में भारत ने इस दिशा में जिस तरीके के योजना बनाकर काम किया है, उससे न सिर्फ बाघों की संख्या में 30 फीसद से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है, बल्कि दुनिया में भारत की वन्यजीवों को बचाने के लिए दृढ़-इच्छाशक्ति भी सामने आयी है। इस बीच भारत ने बाघों की जनसंख्या को लेकर हो रही गणना में भारी बढ़ोत्तरी की उम्मीद जताई है। इस सफलता में वन्यजीव कानून पर सख्ती शामिल है।
विश्व बाघ दिवस के मौके पर देश को बाघों को लेकर बड़ी खुशखबरी मिल सकती है। इस दौरान बाघों की बढ़ी और सही संख्या की जानकारी सामने आ सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को देश भर में बाघों को लेकर कराई गई गणना से जुड़ी रिपोर्ट जारी करेंगे। इसका काम 2018 से ही चल रहा था, जो हाल ही में पूरा हुआ है।

इससे पहले बाघों की गणना को लेकर 2006, 2010 और 2014 में रिपोर्ट जारी हो चुकी है। देश में बाघों के संरक्षण का यह काम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की देखरेख में ही चल रहा है।

बाघों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक दिन बाघों के नाम समर्पित किया जाता है। बता दें कि पूरे विश्व में बाघों की तेजी से घटती संख्या के प्रति संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने को लेकर प्रति वर्ष 29 जुलाई को ‘वर्ल्ड टाइगर डे’ मनाया जाता है। इस दिन विश्व भर में बाघों के संरक्षण से सम्बंधित जानकारियों को साझा किया जाता है और इस दिशा में जागरुकता अभियान चलाया जाता है।
जंगलों के कटान और अवैध शिकार की वजह से बाघों की संख्या तेज़ी से कम हो रही है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और ग्लोबल टाइगर फोरम के 2016 के आंकड़ों के अनुसार, पूरी दुनिया में तक़रीबन 6000 बाघ ही बचे हैं जिनमें से 3891 बाघ भारत में मौजूद हैं। पूरी दुनिया में बाघों की कई किस्म की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें 6 प्रजातियां प्रमुख हैं। इनमें साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं।

उत्तराखंड भारत के बाघों की राजधानी के रूप में उभर रहा है। उत्तराखंड के हर जिले में बाघों की उपस्थिति पायी गयी है। वन विभाग के साथ-साथ राज्य सरकार इन अध्ययनों से काफी उत्साहित है और केन्द्र सरकार को इस संबंध में रिपोर्ट भेजेगी। उत्तराखंड में 1995 से 2019 के बीच किये गये विभिन्न शोधों व अध्ययनों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है। इस दौरान विभिन्न डब्ल्यूआईआई के रिपोर्टों के अलावा विभिन्न समय में लगाये गये कैमरा ट्रेपों व मीडिया रिपोर्टों को आधार बनाया गया है।

वन कर्मचारियों और ग्रामीणों द्वारा बाघों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष साक्ष्य जैसे पगमार्क, चिन्ह इत्यादि को भी आधार बनाया गया है। उन्होंने कहा कि भौगालिक रूप से देखा जाय तो उत्तराखंड उच्च हिमालय, मध्य हिमालय के अलावा तराई के मैदानी हिस्सों में बंटा हुआ है। खास बात यह है कि इन तीनों हिस्सों में बाघों की उपस्थिति के संकेत मिले हैं।

प्रदेश के दो गढ़वाल व कुमाऊं मंडल में 13 जिले मौजूद हैं और सभी में बाघों की उपस्थिति दर्ज की गयी

By vandna

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