आपने फिल्म दिल्ली-6 का एक गाना बहुत सुना होगा … सास गारी देवे, देवर समझा लेवे…ससुराल गेंदा फूल..। इसमें सास, देवर, सैंया और ननद जैसे रिश्तों का मतलब तो सामान्यता सभी समझते हैं लेकिन क्या आप “ससुराल गेंदा फूल“ अर्थ जानते हैं? यानि इस गाने में ससुराल को गेंदा फूल क्यों कहा गया है? सोशल मीडिया पर भावना जोशी ने इस सवाल का अर्थ स्पष्ट किया है। आइये जानते हैं क्यों है “ससुराल गेंदा फूल“…
गेंदा एक ऐसा फूल है जो बारहमासी है यानि साल भर खिलता है। उसको कोई खास जगह की आवश्यकता नहीं होती। गेंदा के फूल गमले में भी उतने ही अच्छे से फूलता एवम् फलता जैसे भूमि पर फलता है। और सदैव गुच्छों में खिला खिला होता है।
ऐसे ही गीत में ससुराल को कहे गेंदा फूल की उपमा दी है अर्थात “ ससुराल को गेंदा फूल“ बताया गया है।
इसको इस तरह बता सकते हैं —
भारत में विवाह में विदेशों की भांति केवल दो व्यक्ति नहीं जुड़ते बल्कि विवाह के बाद नए रिश्ते बनते हैं। चूंकि भारत में संयुक्त परिवार का चलन रहा है। विवाह के बाद पत्नि के लिए नई जगह, ससुराल में इतने सारे नए रिश्तों के साथ रहना होता है जिसमें वो पत्नि के अलावा, बहू, भाभी, देवरानी, मामी, चाची जैसे अनेक रिश्तों में बंध जाती है।
ससुराल में सभी गेंदे के फूलों के गुच्छों में मजबूती से बंधे रहते हैं। जैसे गेंदे के फूल में अलग-अलग पंखुड़ी मिलकर फूल बनाती है, उसी तरह ससुराल में कई रिश्ते होते हैं (गेंदे के फूल जैसे) जो मजबूती से एक दूसरे के साथ बंधे होते हैं और यही गेंदे के फूल आपस में जुड़कर फूलों का एक गुच्छा (ससुराल) बनाते हैं।
इतने सारे नए रिश्ते के बीच नव विवाहिता को रहना इतना सरल भी नहीं होता। यह बात उस नव विवाहिता के ससुराल वाले भी समझते हैं इसलिए वो नई बहू को परिवार रूपी फूल की खुशबू में समेटने की कोशिश करते हैं यानि गेंदे के फूल में समेटने का प्रयास करते हैं।
और नव विवाहिता इस गेंदे के फूल रूपी ससुराल के गुच्छे में घुलमिल जाती है। उस गेंदे के फूल के गुच्छे में जुड़ जाती है।
और इन्हीं रिश्तों को दिल्ली 6 के गाने में बहुत सुंदर तरीके से बताया गया है जिसके गीतकार हैं प्रसून जोशी और रेखा भारद्वाज, श्रद्धा पंडित और सुजाता मजूमदार ने खूबसूरती से गीत को गाया है। ए आर रहमान का मधुर संगीत है।
जब इस गीत के शब्दों की तरफ ध्यान देंगे तो समझ जाएंगे कि किस तरह हंसी ठीठोली करके घर की बहू को सहज करते हैं —
सैंया छेड़ देवे, ननद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल
छोड़ा बाबुल का अंगना
भावे डेरा पिया का हो
सास गारी देवे…
सैय्याँ हैं व्यापारी, चले हैं परदेस
सुरतिया निहारूँ, जियारा भारी होवे
ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे…
बुशट पहिने, खाईके बीड़ा पान
पूरे रायपुर से अलग है
सैय्याँ जी की शान
ससुराल गेंदा फूल
सैयां छेड़ देवे…
इस प्यारे से गीत से “ ससुराल गेंदा फूल “ वाली बात आसानी से समझी का सकती है।
ऐसे ही हमारे देश के अलग अलग राज्य, अलग अलग क्षेत्र के गीत संगीत, लोकगीत, कहावतें भारतीय संस्कृति को बताते हैं। यह हमारे देश की विशेषता है और हमारी विरासत भी है।