नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें अंधविश्वास के चलन, काला जादू और अवैध एवं जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की मांग की गई थी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि 18 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख देखते हुए याचिकाकर्ता ने अर्जी वापस लेने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी वापस लेने की इजाजत देते हुए उसे खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील गोपाल शंकर नारायण ने इस अर्जी में कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काला जादू के इस्तेमाल पर रोक लगाया जाए। धर्म परिवर्तन के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल हो रहा है देश भर में हर हफ्ते ये सब हो रहा है जिसे रोकने के लिए कानून की जरूरत है। इस तरह के धर्मांतरन के शिकार लोग गरीब तबके से आते हैं और ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं और खासकर एससी व एसटी श्रेणी से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं। इस तरह से अंधविश्वास का चलन, काला जादू और अवैध धर्मांतरण का मामला संविधान के अनुच्छेद- 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।

न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने सवाल किया कि अनुच्छेद-25 के तहत सभी धर्म का प्रचार प्रसार करने का अधिकार मिला हुआ है। इस पर गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि धर्म को प्रचार प्रसार का अधिकार है लेकिन इसके लिए अपवाद भी बनाए गए हैं। पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और मोरल ग्राउंड शर्त है कि ये आड़े नहीं आना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिर सरकार को कानून बनाने से रोका किसने है। कई राज्यों में इसके लिए कानून भी है। इस पर याचिकाककर्ता के वकील ने कहा कि महाराष्ट्र में अंधविश्वास के खिलाफ कानून है लेकिन केंद्र सरकार का कोई कानून नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ये अर्जी पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन है। तब याचिकाकर्ता ने कहा कि हम इस मामले में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और विधि आयोग के सामने प्रतिवेदन देना चाहते हैं और अर्जी वापस लेना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी वापस लेने की इजाजत देते हुए अर्जी खारिज कर दी।

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