बरेली। आपने एक पुरानी कहावत जरूर सुनी होगी, “कौवा कान ले गया और लोग अपने कान लाने के लिए कौवे के पीछे भागने लगे।” कुछ ऐसा ही हुआ है पढ़ाई-लिखाई वाले बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षक-शिक्षिकाओं और विभागीय तंत्र को संचालित करने वाले अफसरों के साथ भी। जिलाधिकारी ने आदेश दिए कि कोरोना फैल रहा है स्कूल बंद रहेंगे, लेकिन इसके बाद पता नहीं किसने आदेश दिया और बेसिक शिक्षा विभाग के ज्यादातर स्कूल खुल गए। हालांकि बच्चे स्कूल नहीं आये लेकिन न सिर्फ सारे शिक्षक-शिक्षिकाएं पहुंचे बल्कि जो नहीं गए वे पोर्टल पर गैरहाजिर भी दर्ज हुए। सामाजिक कार्यकर्ता राजीव शांत ने इस मामले को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सामने उठाया और शिकायत कर दी। आयोग ने जिलाधिकारी से इस प्रकरण में जवाब तलब किया है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजीव शांत ने मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष को लिखे अपने शिकायती पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए जिलाधिकारी बरेली के आदेश का उल्लंघन करके ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय खोलकर घनघोर लापरवाही बरती जा रही है और यह लापरवाही कोई और नहीं पढ़े-लिखे शिक्षक-शिक्षिकाएं, एआरपी, खंड शिक्षा अधिकारी और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा बरती जा रही है। उन्होंने इस संदर्भ में जिला अधिकारी के 8 अप्रैल 2021 के एक आदेश का जिक्र किया है जिसके अनुसार डीएम ने यह निर्देश जारी किया था कि जिले के कक्षा 1 से 12 तक के सभी सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों को बंद कर दिया जाएगा लेकिन इस आदेश की अवहेलना करते हुए 9 एवं 10 अप्रैल को जनपद में ज्यादातर विद्यालयों को खोल दिया गया। इन स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाओं की 100% उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए सभी खंड विकास शिक्षा अधिकारियों तथा एकेडमिक रिसोर्स पर्सन यानी एआरपी को यह जिम्मेदारी दी गई कि वे निरीक्षण करें यानी सपोर्टिव सुपरविजन करें। इसके साथ ही वे शिक्षक-शिक्षिकाएं जो स्कूल नहीं पहुंचे थे, उनको उपस्थिति पंजिका यानी अटेंडेंस रजिस्टर में ऑनलाइन पोर्टल पर गैरहाजिर दर्ज किया गया। श्री शांत ने इस मामले में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी विनय कुमार को घनघोर लापरवाही का जिम्मेदार माना है तथा कहा है कि ऐसे कोरोनावायरस के समय में उनका यह तुगलकी फरमान जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना की संभावना बढ़ाने वाला है, साथ ही इससे हजारों शिक्षक शिकक्षिकाओं की जान को भी खतरा है।
राजीव शांत ने अपने पत्र में डीएम के आदेश का उल्लंघन करके स्कूल खोलने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं तथा इस दौरान स्कूलों का निरीक्षण करने वाले खंड शिक्षा अधिकारियों, सपोर्टिव सुपरविजन के नाम पर स्कूल खोलने का दबाव बनाने वाले एआरपी और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के खिलाफ महामारी एक्ट एवं मजिस्टेरियल आदेश के उल्लंघन की धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराने की भी मांग की है। साथ ही यह भी कहा है कि इनके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई के आदेश भी जारी किए जाएं ताकि कोरोना की इस प्रचंड महामारी के प्रकोप से जनता को बचाया जा सके।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने राजीव शांत की इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी बरेली को इस संदर्भ में कार्रवाई के आदेश दिए हैं तथा समुचित निर्णय करके 8 सप्ताह के अंदर समुचित कार्रवाई भी करने केनिर्देश दिए हैं।
राजीव शांत का कहना है कि एक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में उनकी भूमिका एक विस्हिल व्लोहर की है। हम इस वक्त कोरोना काल में मानव सभ्यता के इतिहास के सबसे खराब दौर में हैं। ऐसे में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से ऐसी जानलेवा लापरवाही अक्षम्य है। यहां सवाल सैकड़ों-हजारों शिक्षक-शिक्षिकाओं और उनके परिवारों के साथ-साथ आम आदमी के जीवन का भी है। इसलिए इस संदर्भ में ऐसी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए जो नजीर बने।