– जयंती 20 मई पर विशेष –
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ सुमित्रानंदन पंत की गिनती छायावाद के प्रमुख कवियों में होती है। सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। उनका बचपन पहाड़ की सुरम्य वादियों में बीता था। इसलिए उनके मन में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता के प्रति गहरा अनुराग था। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति का सजीव चित्रण किया है। इसके लिए उन्हें हिंदी साहित्य का वर्डवर्थ भी कहा जाता है। वे हिंदी साहित्य के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं और उनका यशरूपी प्रकाश कभी मध्यम नहीं होगा। उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी नामक पहाड़ी कस्बे में 20 मई 1900 को हुआ था। उनके जन्म के 6 घंटे बाद ही उनकी मां सरस्वती देवी का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। दादी ने उनका नाम गोसाईं दत्त रखा। पिता गंगादत्त पंत समाज के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी के ही प्राइमरी स्कूल में हुई। बाद में वे अल्मोड़ा गये और वहां राजकीय हाईस्कूल में प्रवेश लिया। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। सन् 1918 में अपने मझले भाई के साथ वे काशी चले गए और वहां क्वीन्स गवर्मेंट इंटर कॉलेज में अध्ययन करने लगे। वहां से हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वे इलाहाबाद चले गए और म्योर कॉलेज में कक्षा 11 में प्रवेश लिया। अध्ययन के दौरान ही वे महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। वे लम्बे समय तक इलाहाबाद में रहे और असहयोग आंदोलन में सक्रिया भूमिका निभाते रहे।
सुमित्रानंदन पंत में बचपन से ही साहित्यिक अभिरुचि थी। जब वे चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी से उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। सन् 1918 के आसपास तक वे हिंदी में नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। इस दौर की उनकी प्रमुख कविताएं उनके प्रसिद्ध काव्यसंग्रह वीणा में संकलित हैं। सन् 1926 मे उनका काव्य संकलन पल्लव प्रकाशित हुआ जो पाठकों के मध्य बहुत लोकप्रिय हुआ। सन् 1938 में वे अलमोड़ा लौट आये और प्रगतिशील मासिक पत्रिका रूपाभ का सम्पादन प्रारंभ किया। वे 1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता भी रहे।
ग्रंथी, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, काला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, चिदम्बरा, सत्यकाम आदि उनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं। तारापथ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने मधु ज्वाल नाम से उमर खय्याम की रूबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला। ख्यातिलब्ध कवि हरिवंश राय बच्चन उनके गहरे मित्र थे। कहते हैं कि अमिताभ बच्चन को अमिताभ नाम सुमित्रानंद पंत ने ही दिया था। उन्होंने हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह भी प्रकाशित कराया।
पंत की रचनाओं में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता के रमणीय चित्रण मिलता है। वे महान प्रकृति प्रेमी थे और प्रकृति के सानिध्य में रहकर कालजयी कृतियों की रचना की। प्रकृति के विभिन्न रूपों का वर्णन अपनी रचनाओं में उन्होंने बहुत ही सहजता के साथ किया है। इसलिए उन्हें प्रकृति का चतुर चितेरा भी कहा जाता है।
सन् 1961 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। अमर कृति चिदम्बरा के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला जबकि काला और बूढ़ा चांद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
पंत जी आजीवन अविवाहित रहकर साहित्य सृजन में लगे रहे। उनके अंतःस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति सदैव सौंदर्यपरक भावना रही। हिंदी साहित्य का ये महान पुरोधा 28 दिसंबर सन् 1977 को चिरनिद्रा में लीन हो गया। कौसानी में उनके पुराने घर को सुमित्रानंदन पंत वीथी के नाम से संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से साहित्य प्रेमी कौसानी पहुंचते हैं।
सुरेश बाबू मिश्रा
(लेखक साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य हैं)