चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में चल रहे तनाव के बीच भारतीय सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ढांचागत निर्माण कार्य 5 साल के लक्ष्य के विपरीत 4 वर्ष में ही पूरा कर लिया है। इससे पूर्वी लद्दाख की में एलएसी पर भारतीय जवान अब शून्य से नीचे (-45 डिग्री) तापमान पर भी सुरक्षित रह सकेंगे। इसके साथ ही राफेल युद्धक विमानों की एक और खेप भी भारत पहुंच गई है। फ्रांस से लगभग 8 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर भारत पहुंचे इन 3 राफेल विमानों को भारतीय वायुसेना ने रिसीव किया। इससे पहले 22 अप्रैल को 4 विमानों की पांचवीं खेप भारत आई थी।
सूत्रों के अनुसार, लगभग 50 हजार भारतीय जवान पूर्वी लद्दाख में तैनात हैं। सरकार एलएसी तक सड़कों समेत सभी तरह के बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में नियमित प्रयासरत है। नीमू पदम दारचा पर कार्य तेज गति से हो रहा है। सेना के इंजीनियरों ने अग्रिम चौकियों तक कुछ सड़क बनाने का काम पूरा भी कर लिया है ताकि किसी भी समय सैनिकों को लद्दाख ले जाया जा सके। उधर तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति लबसांग सांगे ने भी चीन को चेताया है कि वह तिब्बत को अपना हिस्सा बनाने की कोशिश नहीं करे। वाशिंगटन से जारी बयान में सांगे ने कहा कि तिब्बतियों पर चीन अत्याचार कर रहा है जिसे रोकने को विश्व समुदाय रोकने को आगे आये।
चीन को स्पष्ट संदेश देते हुए सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने दो दिन पहले कहा कि पूर्वी लद्दाख में टकराव के सभी बिंदुओं से चीनी सैनिकों की पूरी तरह वापसी हुए बिना तनाव में कमी नहीं आ सकती। साथ ही भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में एलएसी में हर तरह की आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। जनरल नरवणे ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत दृढ़ता से और बिना उकसावे वाले तरीके से चीन के साथ इस मामले से निपट रहा है ताकि पूर्वी लद्दाख में उसके दावों की शुचिता सुनिश्चित हो और वह विश्वास बहाली के कदम उठाने को भी तैयार है। जनरल नरवणे ने कहा कि इस समय भारतीय सेना ऊंचाई वाले क्षेत्र में सभी महत्वपूर्ण इलाकों में नियंत्रण बनाकर रख रही है और किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए उसके पर्याप्त जवान हैं जिन्हें ‘आरक्षित’ रखा गया है। उन्होंने कहा कि हमारा रुख बहुत स्पष्ट है कि 5 मई 2020 को गलवान में हुए टकराव के बाद के सभी बिंदुओं से चीनी सैनिकों की वापसी हुए बिना टकराव की स्थिति कम नहीं हो सकती।
भारत और चीन ने सीमा संबंधी कई समझौतों पर दस्तखत किए हैं, जिनका चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने एकपक्षीय तरीके से उल्लंघन किया है। पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों की पूरी तरह वापसी के बिना तनाव कम नही होगा। दोनों पक्षों की वार्ता में सीमित प्रगति हुई है जिस पर भी चीन के अड़ियलपन से हालात जस के तस हैं। भारतीय सेना ऊंचाई वालेले इलाको में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है और मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम है। भारतीय सेना ने इस माह आई उस मीडिया रिपोर्ट को भी गलत बताया है जिसमें गलवान में चीनी सैनिको के साथ फिर भिड़ंत होने तथा हथियार खरीदने में धन और संसाधनों की कमी की बात कही गई थी। जनरल नरवणे ने ऐसी सभी रिपोर्ट का खंडन करते हुए सेना के प्रवक्ताओं से सीधी जानकारी लेकर ही मीडिया से रिपोर्ट देने की भी अपील की।
जनरल नरवणे का कहना है कि भारतीय सेना का आधुनिकीकरण सही तरीके से चल रहा है। पिछले वित्त वर्ष से अब तक लगभग 21 हजार करोड़ रुपये के रक्षा से संबंधित 59 सौदे हो चुके है। कई प्रस्तावों पर कुछ प्रगति भी हुई है। सरकार की और से आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। हालात यह है कि ‘क्वाड समूह’ को भी अब कुछ देश सैन्य गठबंधन के तौर पर बता रहे हैं।
जहां तक चीन की चालबाजी की बात है, वह अब तुर्की और पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को घेरने के प्रयास में भी जुटा है। फ्रंटियर पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन अब इस्लामाबाद को कर्जा देकर उसकी पुनः मदद करना चाह रहा है। अब तो तुर्की भी चीन के चेंगडु में अपना महादूतावास भी खोलने की बात कह रहा है। यही नहीं, पाकिस्तान में भी तुर्की कई परियोजनाओं में निवेश कर रहा है। चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे भयानक अत्याचार को भी यह मुस्लिम देश भुला चुका लगता है।
चीन में उन्नति का बढ़ता स्तर कई समस्याएं भी पैदा कर रहा है। इनमें सबसे प्रमुख है वहां के युवाओं की प्रजनन क्षमता तेजी से कम हो रही है और वह अब अपनी व्यस्तता के बीच बच्चे भी पैदा नहीं करना चाहते। इसके चलते चीन का सैन्य प्रशासन भी परेशान है। सैनिकों की संख्या के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी सेना पीएलए में लाखों पद खाली पड़े हैं। चीन में युवाओं की कम होती संख्या के चलते इन खाली पदों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। चीन की दशक में एक बार होने वाली जनगणना के आंकड़े इसी मई में सामने आ गए हैं। इन आंकडों से पता चला है कि वर्ष 2020 में चीन में कुल 1.2 करोड़ बच्चे पैदा हुए। यह संख्या 1961 के बाद किसी एक साल में पैदा हुए बच्चों की संख्या में सबसे कम बताई गई है। इसके अलावा कोरोना वायरस की उत्पत्ति के मुद्दे पर भी चीन को घेरने पर विश्व के वैज्ञानिक एकमत होने लगे है। अमेरिका ने भी इस दिशा में 80 दिन की समय सीमा निर्धारित की है।
निर्भय सक्सेना
(वरिष्ठ पत्रकार)