बरेली। अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की 124वीं जयंती पर आयोजित वेबिनार में वक्ताओं ने राम प्रसाद बिस्मिल को जंगे आजादी का सबसे निर्भीक और बड़ा योद्धा बताया।

मानव सेवा क्लब द्वारा आयोजित इस वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने कहा कि शहीद राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी तो थे ही, साथ ही वह एक लेखक, कवि एवं अनुवादक भी थे। आर्य समाज की विचारधारा से वह प्रभावित रहे। सत्यार्थ प्रकाश पढ़ कर उन्होंने उसे अपने जीवन में उतारा। अपनी लिखी पुस्तकों की आय से वह क्रांतिकारी साथियों के लिए शस्त्र भी खरीदते थे। उन्होंने कहा कि गोरखपुर की जेल के जिस 7 नम्बर कमरे में वह रहे, उसका पर्यटन विभाग ने जीर्णोद्धार किया। उन्होंने अपनी मां से वचन लिया था कि उनके फांसी लगने पर वह अपना मन विचलित नहीं करेंगी।

साहित्यकार सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि राम प्रसाद बिस्मिल भारत माता के सच्चे सपूत थे। वह अमर क्रांतिकारी हैं। हम सबको उनकी शहादत पर गर्व है। वे देश और रूहेलखंड का गौरव हैं। काकोरी प्रकरण भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम अध्याय है। बिस्मिल ने अन्य नौजवान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी स्टेशन से पहले ट्रेन रोककर अंग्रजों के सरकारी खजाने को लूटा था। उन पर मुकदमा चला और 19 दिसम्बर 1927 को उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले उन्होंने यह शेर पढ़ा-

सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

सी.ए. राजेन विद्यार्थी ने कहा कि अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल काकोरी कांड के हीरो थे। आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वेबिनार का संचालन करते हुए क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने कहा कि युवाओं को बिस्मिल के देश प्रेम, कर्मठता और निष्ठा से प्रेरणा लेनी चाहिए। हम उनकी इन बातों का लेशमात्र भी अनुसरण कर लें तो यह उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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