21 साल के कन्हाई लाल दत्त को 10 नवंबर 1908 को अलीपुर जेल में ही फांसी दे दी गई। कन्हाई लाल हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। वह खुदीराम बोस के बाद फांसी पर झूलने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के क्रांतिवीर थे।

-75वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

न् 1908 की बात है। मई का महीना था। मुखबिरों की मदद से अलीपुर में छापे के दौरान पुलिस को तैयार एवं गैर तैयार बम बनाने का मसाला, डाइनामाइट और कुछ हथियार हाथ लगे। कुछ चिट्ठियाँ भी पकड़ी गयीं। इसके साथ ही कारखाने में काम कर रहे 24 क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इस केस को ही अलीपुर बम कांड का नाम दिया गया था।

इस केस में नरेन्द्र नाथ गोसाई भी पकड़ा गया था। वह पुलिस की यातना को झेल नहीं सका और मुखबिर बन गया। उसी की मदद से पुलिस इतनी बड़ी संख्या में क्रांतिकारी नौजवानों को पकड़ने में सफल हो गयी थी। इसी केस में कन्हाई लाल दत्त (कनाई लाल दत्ता) को भी पकड़ा गया था और उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया। प्रमुख क्रांतिकारी सत्येन्द्र नाथ बोस पहले से ही अलीपुर जेल में बंद थे। नरेन्द्र नाथ गोसाई के मुखबिर बन जाने से ये दोनों नौजवान उससे बहुत नाराज़ थे।

नरेन्द्र नाथ गोसाई कचहरी में जज के सामने उन सभी बातों को हूबहू दोहरा देता था जो पुलिस उसे एक दिन पहले सिखा देती थी। इस तरह उसने बंगाल के हर नेता को अलीपुर बम कांड से संबंधित बताया जिसकी वजह से उन लोगों को भारी मुसीबतें झेलनी पड़ीं। इस प्रकार नरेन्द्र गोसाई क्रांतिकारियों के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया था। इस खतरे को रास्ते से हटा देना क्रांति की सफलता के लिए बहुत ज़रूरी था। इसलिए कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र नाथ बोस ने अंग्रेज पुलिस के मुखबिर नरेन्द्र गोसाई को खत्म करने की योजना बनायी। इस योजना के अनुसार दोनों ने बाहर से गोलियों से भरे दो रिवाल्वर मंगवाए। जेल के भीतर रिवाल्वर मंगाकर रखना कोई साधारण काम नहीं था। मगर खतरों से खेलना तो क्रान्तिकारियों का जीवन ही बन गया था।

जेल में एक कैदी का दूसरे कैदी की बैरक में जाना कठिन काम था। मगर इसका उपाय भी दोनों ने निकाल लिया। यह उपाय था- दोनों का बारी-बारी से बीमार होकर जेल के अस्पताल में दाखिल हो जाना। वहां नरेन्द्र गोसाई बेरोकटोक जाया करता था।

सत्येन्द्र नाथ ने खांसी की बीमारी बताई और वे खांसते-खांसते बेहाल हो गए। सिपाहियों ने उन्हें जेल के अस्पताल में भर्ती करा दिया। उधर कन्हाई लाल ने पेट में दर्द का बहाना किया और वे भी अस्पताल जा पहुंचे। अस्पताल पहुंचकर कन्हाई लाल दत्त ने खूब ज़ोर-ज़ोर से कराहना शुरू कर दिया। उनकी हालत देखकर अंग्रेज़ जेलर तक चक्कर में पड़ गया। उसने समझा कि कन्हाई लाल अब दो-चार दिन के ही मेहमान हैं। परंतु कन्हाई लाल की असली मंशा तो यह थी कि उनके साथी सत्येन्द्र नाथ बोस किसी प्रकार जान लें कि कन्हाई लाल भी अस्पताल में आ गए हैं और उन्हें अपनी योजना पर अब अमल शुरू कर देना चाहिए।

सत्येन्द्र नाथ बोस और कन्हाई लाल दत्त ने यह दिखाना शुरू कर दिया कि अब वे जिंदगी से बेजार हो गए हैं और अपने साथियों से बेहद नाराज़ हैं। यही बात किसी सिपाही द्वारा उन्होंने मुखबिर नरेन्द्र नाथ गोसाई को कहला भेजी। इसके बाद सत्येन्द्र नाथ ने नरेन्द गोसाई तक यह खबर भी पहुंचाई कि वे स्वयं मुखबिर बनकर जेल से अपनी रिहाई चाहते हैं, इसलिए अगर वह उनसे मिलने का इंतज़ाम करे तो बहुत अच्छा हो।

सत्येन्द्र नाथ और कन्हाई लाल के इस नकली नाटक से जेल के अधिकारी बहुत खुश हुए। उन्होंने खुशी-खुशी नरेन्द्र गोसाई को सत्येन्द्र नाथ से मिलने की आज्ञा दे दी। नरेन्द्र भी खुश था कि उसे एक और साथी मिल जाएगा। वह बड़ी खुशी के साथ एक अंग्रेज़ सिपाही को लेकर सत्येन्द्र से मिलने पहुंचा। सत्येन्द्र नाथ ने उस अंग्रेज़ सिपाही को यह कह कर वहाँ से हटा दिया कि उन्हें नरेन्द्र से बहुत सी निजी बातें करनी हैं। अंग्रेज़ सिपाही के हटते ही सत्येन्द्र ने नरेन्द्र गोसाई पर अपनी रिवाल्वर से फायर कर दिया। गोली नरेन्द्र के हाथ में लगी। वह जान बचाकर चिल्लाते हुए नीचे भागा-  बचाओ-बचाओ, वे हमें मार डालेंगे।

कन्हाई लाल दत्त वहीं पास खड़े थे। दोनों ने भागते-चिल्लाते नरेन्द्र गोसाई का पीछा किया। नरेन्द्र आगे-आगे जान बताने के लिए भाग रहा था, सत्येन्द्र बोस और कन्हाई दत्त रिवाल्वर लिए हुए उसके पीछे भाग रहे थे। दोनों गोलियां भी चला रहे थे। एक गोली नरेन्द्र गोसाई के कूल्हे पर लगी और वह गिर गया।

एक अंग्रेज़ सिपाही ने इस बीच कन्हाई दत्त को पकड़ना चाहा मगर कन्हाई ने उसे घायल कर दिया। आगे भागने पर एक तगड़े अंग्रेज़ ने सत्येन्द्र बोस को नीचे गिरा दिया, फिर उसने कन्हाई दत्त को जा पकड़ा। कन्हाई दत्त ने अपना रिवाल्वर उसके सिर पर दे मारा और खुद को उसकी पकड़ से छुड़ा लिया। कन्हाई दत्त फिर नरेन्द्र गोसाई के पीछे दौड़ पड़े और उस पर गोली चलाई। गोली खाकर नरेन्द्र गोसाई फिर गिर गया। उसका काम तमाम हो चुका था।

पास ही जेल का मुख्य द्वार था। वहां बड़ी संख्या में अंग्रेज़ पुलिस तैनात थी। सत्येन्द्र और कन्हाई दत्त दोनों के रिवाल्वर खाली हो चुके थे, इसलिए दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों अपना काम पूरा कर चुके थे। मुखबिर नरेन्द्र गोसाई को उसकी गद्दारी की सज़ा मिल चुकी थी।

जेल जांच समिति के सामने ही सत्येन्द्र और कन्हाई दत्त ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था। अंग्रेज़ अदालत ने दोनों को फांसी की सज़ा सुनाई। बाद में सत्येन्द्र का केस उच्च न्यायालय को भेज दिया गया। 21 साल के कन्हाई लाल दत्त को 10 नवंबर 1908 को अलीपुर जेल में ही फांसी दे दी गई। कन्हाई लाल हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। वह खुदीराम बोस के बाद फांसी पर झूलने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के क्रांतिवीर थे।

जनता ने कन्हाईलाल दत्त की अर्थी का शानदार जुलूस निकाला। हज़ारों आंखों ने उन्हें अपने आंसुओं की श्रद्धांजलि देकर उनकी पूजा की। श्मशान घाट पर ही एक व्यक्ति ने चंदा कर कई मन चंदन की लकड़ी मंगवाई। शहीद के लिए चंदन की चिता सजाई गई। चिता पर जब कन्हाई का शव रखा गया तो ऐसा मालूम होता था जैसे वे परम सुख की नींद सो रहे हों।

उनके अंतिम दर्शन के लिए जनता में होड़ लग गयी। किसी प्रकार लोगों को हटाकर चिता में आग लगाई गई। चारों तरफ चंदन की खुशबू फैल गई। थोड़ी देर में ही शहीद का शव चंदन की खुशबू बनकर जनमानस में बस गया। वहां शंख और जली हड्डियों के सिवा कुछ बाकी न रहा। बाकी थी केवल चंदन मिली हुई क्रांति की महक जिससे आगे चलकर सारा गुलशन महक उठा।

सुरेश बाबू मिश्रा

(साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार)

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