नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध साहित्यकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ भगवती शरण मिश्र नहीं रहे। शुक्रवार सुबह नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।शनिवार सुबह पुत्र दुर्गा शरण मिश्र ने उन्हें मुखाग्नि दी। वे बिहार के रोहतास जिले के संझौली प्रखंड के बेनसागर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने 100 से भी ज्यादा पुस्तकें और ग्रंथ लिखे हैं। 

हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला और मैथिली के विद्वान भगवती शरण मिश्र बिहार सरकार के राजभाषा विभाग के राजभाषा निदेशक रहने के साथ ही रेल मंत्रालय में भी उच्च पद पर रहे। उन्होंने हिंदी, भोजपुरी, मैथिली ग्रंथ अकादमी के प्रमुख का भी पद संभाला था। 81 वर्षीय मिश्र अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।

डॉ भगवती शरण मिश्र संस्कृत के धर्मप्राण विद्वान यदुनंदन मिश्र के पौत्र और संस्कृत एवं हिंदी के सुप्रतिष्ठित विद्वान पण्डित गजानन मिश्र के सुपुत्र थे। पिता के कठोर अनुशासन और उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने अर्थशास्त्र को अपने अध्ययन का विषय चुना। फिर म्यूनिसिपल टैक्सेसन इन ए डेवलपिंग इकोनॉमी विषय पर बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ्फरपुर  से पीएचडी की। बाद में वे मुजफ्फरपुर में ही नगर निगम के आयुक्त के पद पर पदस्थापित हुए।

डॉ भगवती शरण मिश्र प्रतिष्ठित पत्रिका कादम्बिनी के लिए नियमित लिखते थे। उन्होंने छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘पहला सूरज’, हनुमानजी के जीवन चरित्र पर ‘पवन पुत्र’, श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन चरित्र पर ‘प्रथम पुरुष’, भगवान राम के चरित की नई व्याख्या करते हुए ‘पुरुषोत्तम’ तथा सगुण भक्ति की साधिका मीरा बाई के जीवन चरित्र पर ‘पीताम्बरा’ महाकाव्य लिखा। उनके उपन्यास लेखन की शैली महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर के शिल्प को छूती हुई प्रतीत होती है।

प्रसिद्ध उपन्यास नदी मुड़ती नहीं, पहला सूरज, पवनपुत्र, प्रथम पुरुष पुरुषोत्तम, मैं राम बोल रहा हूं, एक और अहिल्या, देख कबीरा रोया, गोविंद गाथा, पीतांबरा, अग्नि पुरुष ,शांति दूत, सूरज के आने तक, अरण्या, बुद्धिदाता गणेश, जनकसूता आदि।

निबंध संग्रह- राह के पत्थार, शापित लोग, ईश्वर आदि।

कहानी संग्रह- गंगा गंगा कितना पानी, यदा यदा ही धर्मस्य।

जीवनी- भारत के प्रधानमंत्री, भारत के राष्ट्रपति।

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