बरेली। एसआरएमएस के रिद्धिमा सभागार में अर्जुन प्रतिज्ञा का मंचन हुआ। महाभारत युद्ध के इस प्रसंग पर बरेली के प्रसिद्ध नाट्य लेखक राधेश्याम कथावाचक द्वारा लिखित नाटक को निर्देशित किया अंबुज कुकरेती ने। इसमें असत्य और अत्याचारी पर सत्य की जीत दिखायी गयी। भगवान श्रीकृष्ण ने फिर पांडवों का साथ दिया और जयद्रथ का वध करा अर्जुन प्रतिज्ञा पूरी करायी।
नाटक का आरंभ महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु और कौरव महारथियों के बीच युद्ध से हुआ। युद्ध की मर्यादा और नियम तोड़ कर जयद्रथ समेत कई महारथी अकेले अभिमन्यु को घेर लेते हैं। भीषण युद्ध में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त होता है। जयद्रथ उसके शव का अपमान करता है। इस सूचना के युधिष्ठिर टूट जाते हैं। रोते हुए वह अर्जुन को घटना की जानकारी देते हैं। अर्जुन क्रोध में अगले दिन युद्ध में सूर्यास्त से पहले जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा करते हैं। ऐसा न हो पाने पर अर्जुन क्या करेंगे यह भगवान कृष्ण उनके पूछते हैं। अर्जुन उत्तर देते हैं कि ऐसा न हो पाने पर वह खुद चिता सजा कर अग्निस्नान करेंगे और अपने प्राण त्याग देंगे। उधर जयद्रथ अर्जुन की प्रतिज्ञा को सुन कर और उसके हाथों अपनी मृत्यु को सोचकर भयभीत हो जाता है और सेनानायक गुरु द्रोणाचार्य से रक्षा की गुहार लगाता है। द्रोणाचार्य जयद्रथ को समझाते हैं और उसकी रक्षा का वचन देते हैं। अगले दिन जयद्रथ को सेना के बीच छिपा दिया जाता है।
अर्जुन युद्ध करने के लिए जयद्रथ को खोजते हैं लेकिन गुरु द्रोण अर्जुन का रास्ता रोककर सामने आ जाते हैं। दोनों में युद्ध होता है। अर्जुन उन्हें छोड़ कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए जयद्रथ को खोजना चाहते हैं लेकिन द्रोण अर्जुन को ऐसा करने के लिए आगे नहीं बढ़ने देते। ऐसी कोशिश में अंधेरा घिरने लगता है और शाम हो जाती है। जयद्रथ वध न हो पाने की वजह से पांडव निराश हो जाते हैं जबकि कौरव खेमें में सब खुश होते हैं। अर्जुन अब अग्निस्नान कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए चिता सजाते हैं। यह देखने के लिए कौरवों के साथ जयद्रथ भी अर्जुन के सामने आ जाता है। वह भगवान श्रीकृष्ण को छलिया, बहुरूपिया कहता है। इतने में उजाला होने लगता है। बादलों के बीच सूर्य चमकता हुआ अपनी किरणें बिखेरने लगता है। भगवान अर्जुन को सूर्यास्त न होने और जयद्रथ के सामने होने की याद दिलाते हैं। इस पर अर्जुन अपना गांडीव उठाकर जयद्रथ का वध कर देते हैं। इस तरह श्रीकृष्ण की मदद से जयद्रथ वध कर अर्जुन प्रतिज्ञा पूरी होती है।
नाटक में पहली बार अभिनय करने उतरे कथक गुरु अमृत मिश्रा ने भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका में शानदार अभिनय किया। अर्जुन का किरदार पंकज कुकरेती, जयद्रथ का किरदार विनायक श्रीवास्तव, दुर्योधन की भूमिका गौरव धीरज, अभिमन्यु का किरदार प्रकाश, सहदेव का अभिनव, नकुल का सौम्या, युधिष्ठिर का अजय चौहान और द्रोणाचार्य का किरदार शिवम यादव ने निभाकर नाटक में जान फूंकने का काम किया। इस मौके पर सभागार में एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, ऋचा मूर्ति और शहर के सम्भ्रांत लोग मौजूद रहे।