प्रकाश नौटियाल, देहरादून। उत्तराखंड में जहां दावेदारों के बीच टिकटों के लिए मारामारी और पार्टी बदलने का क्रम चल रहा है। वहीं, चुनाव से ठीक 25 दिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जता दी है। इसके बाद से जहां यह सवाल खड़ा होने लगा है कि, क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपना टिकट कटने की आशंका थी या फिर अपनी परम्परगत सीट (डोईवाला) में इस बार समीकरण उनके पक्ष में नहीं दिखाई देने पर उन्होंने चुनाव न लड़ने का मन बनाया है। बहराल, त्रिवेंद्र ने इस मामले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनाने के लिए काम करने की बात कही है। पत्र में उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने का अवसर देने के लिए आभार भी व्यक्त किया।
सीएम के रूप में कार्य करने का दिया अवसर, यह मेरा सौभाग्य
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्र में लिखा कि मान्यवार पार्टी ने मुझे देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने का अवसर दिया, यह मेरा परम सौभाग्य था। मैंने भी कोशिश की कि पवित्रता के साथ राज्य वासियों की एकभाव से सेवा करुं व पार्टी के संतुलित विकास की अवधारणा को पुष्ट करूं। प्रधानमंत्री जी का भरपूर सहयोग व आशीर्वाद मुझे व प्रदेशवासियों को मिला जो अभूतपूर्व था। मैं उनका हृदय की गहराइयों से धन्यवाद करना चाहता हूं। उत्तराखण्ड वासियों का व विशेषकर डोईवाला विधानसभा वासियों का ऋण तो कभी चुकाया ही नहीं जा सकता, उनका भी धन्यवाद कृतज्ञ भाव से करता हूं। डोईवाल विधानसभा वासियों का आशीर्वाद आगे भी पार्टी को मिलता रहेगा। ऐसा मेरा विश्वास है।
कुर्सी से हटने के बाद से नेपथ्य में थे
उल्लेखनीय है कि, चार साल मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को पिछले साल मार्च में भाजपा ने आनन-फानन में कुर्सी से हटा दिया था। एक साल के बचे कार्यकाल में तीर्थ सिंह रावत को मौका दिया गया लेकिन, वह भी ज़्यादा दिन नहीं टिके और फिर बचे छह माह के कार्यकाल में पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया। दोनों सीएम ने उनके फैसलों को पलट दिया। मुख्यमंत्री धामी ने तो त्रिवेंद्र सरकार द्वारा गठित उत्तराखण्ड चारधाम देवस्थानम बोर्ड को ही भंग कर दिया क्योंकि, इसे लेकर तीर्थपुरोहित लंबे समय से आंदोलनरत थे। इसके बाद भी त्रिवेंद्र अपने फैसलों को बेहतर बताते रहे। इसी विरोध के चलते त्रिवेंद्र को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी और तब से वह नेपथ्य में थे।
2002 से शुरू की सक्रिय राजनीति
त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत 2002 में की। उत्तराखण्ड बनने के बाद जब 2002 में पहला विधानसभा चुनाव आयोजित किया गया तो त्रिवेन्द्र सिंह भी सक्रिय राजनीति में आ गए। 2002 में उन्हें भाजपा की तरफ से डोईवाला विधानसभा से टिकट मिला। इस चुनाव में त्रिवेन्द्र सिंह रावत विजय हुए। वहीं 2007 में भी त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विजय हुए। इस दौरान भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया, वहीं 2012 के चुनाव में वह रायपुर से उम्मीदवार बनाए गए, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
2017 के चुनाव में त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक बार फिर डोईवाला से चुनाव लड़े और विजयी रहे। वहीं, मुख्यमंत्री के लिए हुई विधायक दल की बैठक में उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया था।
2022 के चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों में त्रिवेंद्र के नाम की चर्चा भी थी पर, बदली परिस्थितयों में उन्होंने अचानक चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई है। इसका जिक्र उन्होंने पत्र में भी किया है। कहा है कि-माननीय अध्यक्ष जी! विनम्रभाव से आपसे अनुरोध करना चाहता हूं कि राज्य के नेतृत्व परिवर्तन हुआ है व युवा नेतृत्व पुष्कर धामी के रूप में मिला है। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में मुझे विधानसभा चुनाव 2022 नहीं लड़ना चाहिए, मैं अपने भावनाओं से पूर्व में ही अवगत करा चुका हूं।
उन्होंने पत्र में लिखा- मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं। राष्ट्रीय सचिव, झारखंड प्रभारी, उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2014 में सह प्रभारी की जिम्मेदारी मैंने निभाई है। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश में चुनाव अभियानों में काम किया है। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में चुनाव हो रहा हैं। श्री धामी के नेतृत्व में पुनः सरकार बने, उसके लिए पूरा समय लगाना चाहता हूं। अतः आप से पुनः अनुरोध है कि मेरे चुनाव न लड़ने के अनुरोध को स्वीकार करें ताकि मैं अपना सम्पूर्ण प्रयास सरकार बनाने के लिए लगा सकूं।